Delhi Elections: अजित पवार की नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में 11 उम्मीदवार उतारना एक दिलचस्प राजनीतिक कदम है। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन करने के बाद दिल्ली में अलग से चुनाव लड़ने का निर्णय यह दर्शाता है कि पार्टी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने का प्रयास कर रही है।
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दिल्ली चुनाव के लिए NCP ने जारी की पहली लिस्ट
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संसदीय बोर्ड की मंजूरी के बाद शनिवार को पहली सूची जारी की है। इस लिस्ट में 11 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। अजित पवार की नेतृत्व वाली एनसीपी ने आज बुराड़ी, बादली, मंगोलपुरी, चांदनी चौक, बल्ली मारन, छतरपुर, संगम विहार, ओखला, लक्ष्मी नगर,सीमा पुरी और गोकुल पुरी से उम्मीदवार उतारे है।
इन 11 सीटों पर उतारे उम्मीदवार
- चांदनी चौक से खालिदुर्रहमान
- ओखला से इमरान सैफी
- बादली से मुलायम सिंह
- बुराड़ी से रतन त्यागी
- बल्लीमारान से मोहम्मद हारून
- छतरपुर से नरेंद्र तंवर
- संगम विहार से कमर अहमद
- मंगलोपुरी से खेम चंद
- लक्ष्मीनगर से नमाहा
- सीमापुरी से राजेश लोहिया
- गोकुलपुरी से जगदीश भगत
एनसीपी की चुनावी रणनीति
यह कदम एनसीपी की रणनीति को उजागर करता है, जहां वह अलग-अलग राज्यों में अपने राजनीतिक समीकरणों और संभावनाओं के आधार पर चुनावी निर्णय ले रही है। दिल्ली में एनसीपी के उम्मीदवार कितनी सीटों पर प्रभाव डालते हैं और उनकी उपस्थिति आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और कांग्रेस के बीच कैसे संतुलन बनाती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

आप ने सभी 70 सीटों पर उतारे उम्मीदवार
दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रमुख दलों द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा से सियासी माहौल गर्म हो चुका है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, जिससे उसकी चुनावी तैयारियों और आत्मविश्वास का पता चलता है। वहीं, कांग्रेस ने अब तक 47 उम्मीदवारों का ऐलान किया है और बाकी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा का इंतजार है।
एआईएमआईएम के प्रत्याशियों पर विवाद
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) ने मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को और संभावित रूप से सीलमपुर से शाहरुख पठान को मैदान में उतारने की योजना बनाकर चुनावी विवाद को बढ़ावा दिया है। दोनों ही नाम दिल्ली दंगों के आरोपों से जुड़े रहे हैं, और इनकी उम्मीदवारी से विपक्षी दलों को उनके खिलाफ चुनावी मुद्दा उठाने का मौका मिल सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन विवादास्पद उम्मीदवारों के कारण चुनाव में क्या प्रभाव पड़ता है और यह मतदाताओं को कैसे प्रभावित करता है।
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