Bihar Politics: बिहार की राजनीति इन दिनों ‘जमाई पॉलिटिक्स’ के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के उस आरोप के बाद कि राज्य सरकार आयोगों और बोर्डों में बड़े नेताओं के दामादों और रिश्तेदारों को तरजीह दे रही है, अब सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के भीतर भी बगावती सुर सुनाई देने लगे हैं। पार्टी के पटना साहिब विधानसभा क्षेत्र के प्रभारी और अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश प्रवक्ता नवीश कुमार नवेंदु ने 19 जून 2025 को अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है।
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Bihar Politics: 13 साल की निष्ठा के बाद इस्तीफा
नवीश नवेंदु ने अपने फेसबुक पोस्ट और पत्र के माध्यम से अपनी नाराजगी को सार्वजनिक किया। उन्होंने कहा कि वे पिछले 13 वर्षों से पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में हर मौसम में जमीनी स्तर पर काम करते रहे हैं। इसके बावजूद आयोग, बोर्ड और निगमों में उन्हें या उनके जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं को जगह नहीं दी गई। उनके अनुसार, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने “आरएसएस कोटा, दामाद कोटा, मंत्री कोटा, विकास मित्र कोटा और पत्नी कोटा” से लोगों को नियुक्त कर दिया, जो पूर्णतः अनुचित है।
Bihar Politics: इस्तीफा पत्र में तीखे शब्द
अपने त्यागपत्र में नवेंदु ने लिखा, ‘मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ जनता दल यूनाइटेड के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश प्रवक्ता एवं पटना साहिब विधानसभा प्रभारी के पद सहित पार्टी के प्राथमिक सदस्य से इस्तीफा देता हूं। कारण है कि मेरे जैसे कार्यकर्ताओं को बार-बार उपेक्षित किया गया, जबकि नेताओं के परिजनों को बिना योग्यता के महत्वपूर्ण पद सौंपे गए।’
Bihar Politics: तेजस्वी यादव के आरोपों को मिला बल
नवेंदु के इस्तीफे ने तेजस्वी यादव के आरोपों को और भी मजबूती दे दी है। तेजस्वी पहले ही कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार आयोगों को “रिश्तेदारी मंडल” में बदल चुकी है। तेजस्वी का कहना है कि ये नियुक्तियाँ योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि पारिवारिक संबंधों के आधार पर की गई हैं। अब जेडीयू के अंदर से आई यह आवाज उनके आरोपों को विश्वसनीयता देती है।
जेडीयू में अंदरूनी नाराजगी और चुनावी असर
जेडीयू के भीतर इस प्रकार की नाराजगी ऐसे समय पर सामने आई है जब बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का मामला राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकता है। नवेंदु जैसे नेताओं का इस्तीफा यह संकेत देता है कि पार्टी में नीचे से लेकर ऊपर तक असंतोष बढ़ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पार्टी जल्द ही संगठनात्मक और नियुक्ति से जुड़े विवादों को नहीं सुलझाती, तो आगामी चुनावों में कार्यकर्ताओं का समर्थन कमजोर हो सकता है।
जेडीयू की चुप्पी, विपक्ष की आक्रामकता
जेडीयू नेतृत्व ने अब तक इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व आंतरिक नाराजगी को शांत करने की कोशिश कर रहा है। दूसरी ओर, राजद और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल इस मुद्दे को जनता के बीच उठाकर नीतीश सरकार पर हमलावर हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यह ‘जेडीयू के अंदर सड़न’ का उदाहरण है और सत्ता में बने रहने के लिए नीतीश कुमार अपनी पार्टी के सच्चे सिपाहियों को ही भूल चुके हैं।
‘जमाई कोटा’ से गरमा रही राजनीति
नवीश नवेंदु का इस्तीफा केवल एक व्यक्ति की नाराजगी नहीं, बल्कि सत्ता में वफादार कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का प्रतिनिधित्व करता है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक सवाल बन सकता है। यदि जेडीयू नेतृत्व समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाता, तो तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी नेताओं को और अधिक ताकत मिल सकती है, जो “जमाई पॉलिटिक्स” को चुनावी हथियार बनाकर जनता के बीच ले जाएंगे।
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