IOMed by China: चीन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वह अब केवल वैश्विक मंचों पर बैठकर तालियाँ बजाने वाला सदस्य नहीं रहना चाहता, बल्कि नियम बनाने वाला ताक़तवर खिलाड़ी बनना चाहता है। 30 मई 2025 को हांगकांग में IOMed (International Organization for Mediation) नाम से एक नई वैश्विक संस्था की नींव रखी गई — और इसके साथ ही चीन ने एक बार फिर वैश्विक शक्ति संतुलन को चुनौती दी है।
क्या है IOMed और क्यों है यह चर्चा में?
IOMed को चीन ने एक ऐसे संस्थान के रूप में पेश किया है जो अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने का “शांतिपूर्ण” माध्यम बनेगा। यानी, जहां दो देशों या व्यवसायिक संगठनों के बीच कोई झगड़ा हो, वहां यह संस्था मध्यस्थता (mediation) के ज़रिए हल निकालेगी। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में न्याय और निष्पक्षता के लिए बना है, या फिर चीन की “सॉफ्ट पावर” का एक और विस्तार है?
इस नए संगठन में अभी तक 33 देश सदस्य बन चुके हैं — जिनमें चीन, पाकिस्तान, क्यूबा, इंडोनेशिया और बेलारूस जैसे देश शामिल हैं। इन देशों की सूची ही संकेत देती है कि चीन किन मित्रों को अपने साथ जोड़ रहा है — ज़्यादातर वो देश जो पश्चिमी संस्थानों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं या अमेरिका-विरोधी नीति अपनाते हैं।
क्या IOMed बनेगा नया अंतरराष्ट्रीय न्यायालय?
देखा जाए तो IOMed को International Court of Justice (ICJ) या Permanent Court of Arbitration जैसे संस्थानों का विकल्प बताया जा रहा है। लेकिन फर्क साफ है — ICJ संयुक्त राष्ट्र के अधीन काम करता है, उसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं और उसकी प्रक्रिया पारदर्शी होती है। वहीं, IOMed का पूरा ढांचा चीन के नियंत्रण में रहेगा और इसमें सदस्यता, मध्यस्थता प्रक्रिया और निर्णय पूरी तरह “स्वैच्छिक” होंगे। यानी अगर एक पक्ष फैसला न माने, तो कोई ज़बर्दस्ती नहीं।
यहां बड़ा सवाल यही उठता है कि ऐसे “मध्यस्थता मंच” की कितनी विश्वसनीयता होगी, खासकर तब जब इसका मुख्यालय हांगकांग में हो — एक ऐसा क्षेत्र जो अब चीन के सख्त नियंत्रण में है।
ये संस्था नहीं, चीन की रणनीतिक चाल है
चीन का यह कदम केवल एक कानूनी मंच खड़ा करने का नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता संरचना को धीरे-धीरे मोड़ने की एक योजना का हिस्सा है। अमेरिका और यूरोप लंबे समय से वैश्विक संस्थाओं के “नियम निर्माता” रहे हैं — अब चीन उन नियमों को अपने अनुसार बदलना चाहता है।
IOMed के ज़रिए चीन यह संदेश दे रहा है कि वह न केवल वैश्विक विवादों में “शांतिदूत” की भूमिका निभाएगा, बल्कि वह खुद तय करेगा कि कौन सही है और कौन ग़लत।
भविष्य क्या कहता है?
अगर IOMed पारदर्शिता और निष्पक्षता से काम करता है, तो यह वास्तव में एक वैकल्पिक मंच बन सकता है। खासकर उन देशों के लिए जो पश्चिमी संस्थाओं पर भरोसा नहीं करते। लेकिन अगर यह केवल चीन के हितों को साधने का उपकरण बना, तो यह संस्थान दुनिया के लिए न्याय का नहीं, चीन के प्रभाव का नया हथियार बन जाएगा।
चीन की मंशा साफ है
अभी के लिए, एक बात स्पष्ट है – चीन अब सिर्फ बैठकर फैसले सुनने वाला नहीं, फैसले लिखने वाला देश बनना चाहता है। चीन अब भागीदार बनकर संतुष्ट नहीं है – वह एक वैश्विक नियम-निर्माता बनना चाहता है। IOMed उसी यात्रा की एक बड़ी सीढ़ी है। अब यह देखना होगा कि दुनिया इस सीढ़ी पर चढ़ती है या इससे बचती है।
फैक्ट बॉक्स: IOMed बनाम ICJ
विषय | IOMed | International Court of Justice (ICJ) |
---|---|---|
स्थापना | 30 मई 2025, हांगकांग | 1945, हेग (नीदरलैंड) |
मुख्यालय | हांगकांग | हेग, नीदरलैंड |
संचालन | चीन के नेतृत्व में, स्वैच्छिक प्रक्रिया | UN के अधीन, निर्णय बाध्यकारी |
सदस्य | 33 देश (चीन, पाकिस्तान, क्यूबा, इंडोनेशिया आदि) | UN के सभी सदस्य देश |
शिकायतकर्ता कौन हो सकता है? | देश, व्यक्ति व व्यवसायिक संगठन | केवल देश |
निर्णय का प्रभाव | केवल तभी जब दोनों पक्ष सहमत हों | कानूनी रूप से बाध्यकारी |
पारदर्शिता व निष्पक्षता | आलोचना हो रही है; चीन का प्रभुत्व स्पष्ट | स्वतंत्र न्यायाधीशों द्वारा निर्णय |
IOMed की टाइमलाइन: अब तक की घटनाएँ
- जनवरी 2025: चीन ने IOMed की रूपरेखा का संकेत देना शुरू किया।
- मार्च 2025: चीन ने सदस्य देशों से प्रस्तावित ढांचा साझा किया।
- 30 मई 2025: हांगकांग में IOMed की आधिकारिक घोषणा और स्थापना।
- 31 मई 2025: 33 देशों ने सदस्यता पत्र पर हस्ताक्षर किए।
- जून 2025 (अपेक्षित): पहली मीटिंग और संचालन ढांचे की घोषणा।
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