Mega Scam in JVVNL: पूर्व में सरकार में रहे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं, RTI से प्राप्त दस्तावेज बताते हैं कि सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का चूना लगाया गया है। इस कथित घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का नाम सामने आया है। विधानसभा चुनावों से पहले विद्युत विभाग में किए गए इस खेल में नियमों को दरकिनार करते हुए करीब 600 करोड़ रुपये से अधिक की सरकारी धनराशि का दुरुपयोग किया गया।
यह घोटाला तब सामने आया जब जयपुर विद्युत वितरण निगम (JVVNL) ने अगस्त 2023 में सब-स्टेशनों के निर्माण के लिए बड़े टेंडर जारी किए। इस प्रक्रिया में सभी नियमों को ताक पर रखते हुए एक चहेती फर्म को ठेका दिया गया, जिससे चुनावों के लिए काले धन का इंतजाम किया जा सके। जयपुर के आरटीआई एक्टिविस्ट अशोक पाठक ने मामले की तह तक जाने के लिए जब सूचना का अधिकार (RTI) के तहत दस्तावेज जुटाए (सभी दस्तावेज संलग्न हैँ), तब यह ‘महाघोटाला’ उजागर हो पाया। आइए जानते हैं इस पूरे मामले की अंदरूनी कहानी।
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कैसे हुआ घोटाला?
गहलोत-डोटासरा की मिलीभगत
इस पूरे मामले की शुरुआत तब हुई जब 2017 में चार्जशीटेड रहे इंजीनियर आर.एन. कुमावत, जो जुलाई 2018 में सेवानिवृत्त हुए थे, को फरवरी 2023 में गहलोत सरकार ने फिर से जयपुर विद्युत वितरण निगम का प्रबंध निदेशक (एम.डी.) नियुक्त कर दिया। यह नियुक्ति गहलोत और डोटासरा की मिलीभगत से हुई ताकि विधानसभा चुनावों के लिए करोड़ों का फंड जुटाया जा सके।
संदिग्ध टेंडर प्रक्रिया
21 अगस्त 2023 को जयपुर डिस्कॉम ने दो बड़े टेंडर (नंबर 545 और 546) जारी किए। इनमें से टेंडर संख्या 545 में अलवर, भरतपुर और धौलपुर जिलों में 20 जीएसएस (33/11 केवी सब स्टेशन) लगाने थे। वहीं, टेंडर संख्या 546 में जयपुर, कोटा और अन्य जिलों में 22 जीएसएस स्थापित किए जाने थे। कुल मिलाकर इन टेंडरों की वैल्यू 164 करोड़ रुपये थी।
चहेती फर्म को फायदा
मुख्यमंत्री गहलोत के निर्देश पर जयपुर डिस्कॉम के अधिकारियों ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए चहेती फर्म मैसर्स आर.सी. इंटरप्राइजेज, जयपुर को ठेका दिलाने के लिए कई पैंतरे अपनाए। टेंडर प्रक्रिया में प्री-बिड मीटिंग तक आयोजित नहीं की गई, ताकि बड़ी कंपनियां इसमें भाग न ले सकें। इतना ही नहीं, एक बड़े टेंडर को दो छोटे टेंडरों में बांट दिया गया ताकि चहेती फर्म बाहर न हो पाए।
घोटाले की गहराई
सिर्फ एक फर्म को मिला मौका
इस टेंडर प्रक्रिया में जयपुर डिस्कॉम ने ऑफलाइन टेंडर फीस और प्रोसेसिंग फीस जमा करने का प्रावधान रखा। सिर्फ एक फर्म को ही फीस जमा करने का मौका मिला, जिससे अन्य कोई कंपनी भाग नहीं ले सकी। नतीजा यह हुआ कि टेंडर सिर्फ मैसर्स आर.सी. इंटरप्राइजेज ने डाला और उसे ही ठेका दे दिया गया।
एक घंटे में निपटा दिया मामला
यहां तक कि टेंडर की तकनीकी प्रक्रिया और वित्तीय प्रक्रिया को महज एक घंटे में निपटा दिया गया। टेंडर संख्या 545 और 546 में क्रमशः 1:58 बजे और 2:00 बजे तकनीकी प्रक्रिया शुरू हुई और 3:31 बजे वित्तीय प्रक्रिया भी पूरी कर दी गई। यह पूरा खेल इतनी जल्दी निपटाया गया कि किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई।
350 प्रतिशत से अधिक की कीमत
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि टेंडर वैल्यू से 350 प्रतिशत अधिक कीमत पर यह टेंडर दिया गया। टेंडर संख्या 545 की कुल वैल्यू 75 करोड़ 82 लाख रुपये थी, लेकिन मैसर्स आर.सी. इंटरप्राइजेज को 282 करोड़ 53 लाख रुपये में ठेका दे दिया गया। वहीं, टेंडर संख्या 546 की वैल्यू 88 करोड़ रुपये थी, लेकिन इसे 306 करोड़ रुपये में दिया गया। इस तरह, ठेकेदारों को बाजार से कहीं अधिक कीमत पर यह काम दिया गया।
सरकार का राजस्व कैसे लूटा गया?
जीएसएस घटाए, लागत बढ़ाई
राज्य में सरकार बदलते ही टेंडरों के परीक्षण के नाम पर टेंडर संख्या 545 में जहां 20 जीएसएस (33/11 केवी सब स्टेशन) बनाने थे, वहां 2 जीएसएस घटाकर 18 कर दिए गए। फिर भी, 40 करोड़ रुपये की अतिरिक्त लागत जोड़ दी गई। इसी तरह, टेंडर संख्या 546 में 22 जीएसएस की जगह 17 जीएसएस बनाए गए, लेकिन 10 करोड़ रुपये अतिरिक्त जोड़ दिए गए। इस तरह फ़रवरी 2024 में कुल मिलाकर 7 जीएसएस घटाने के बावजूद ठेकेदार की लागत 50 करोड़ रुपये और बढ़ा दी गई
पुराने टेंडरों की तुलना
सितंबर 2023 में इसी प्रकार के 20 जीएसएस के निर्माण के लिए जयपुर डिस्कॉम ने एक और टेंडर (संख्या 544) जारी किया था, जिसकी वैल्यू 56 करोड़ रुपये थी। इस टेंडर में 10 कंपनियों ने भाग लिया और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में न्यूनतम दर पर वर्क ऑर्डर जारी किया गया। इसके मुकाबले, सितंबर में ही जारी टेंडर संख्या 545 और 546 में 35 जीएसएस के लिए 618 करोड़ रुपये का वर्क ऑर्डर जारी किया गया। यहां सवाल उठता है कि जब 20 जीएसएस का निर्माण 56 करोड़ रुपये में हो सकता था, तो 35 जीएसएस के लिए 618 करोड़ रुपये क्यों दिए गए?
इंजीनियर आर.एन. कुमावत का ‘कांग्रेस कनेक्शन’
गहलोत की कृपा से एम.डी. बने
अधीक्षण अभियंता आर एन कुमावत के विरुद्ध वर्ष 2017 में तीन-तीन आरोप पत्र दाखिल हुए और जुलाई 2018 में वे रिटायर हो गए। अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री बनते ही चार्जशीटेड इंजीनियर आर. एन. कुमावत को क्लीनचिट देकर रिटायरमेंट के 8 महीने बाद चीफ इंजीनियर के पद पर प्रमोशन दे दिया और उनको प्रमोशन के सारे आर्थिक प्रतिलाभ दिलवाए। चीफ इंजीनियर आर.एन. कुमावत को फरवरी 2023 में गहलोत सरकार ने जयपुर डिस्कॉम का एम.डी. नियुक्त किया। इनकी इस नियुक्ति में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत की महती भूमिका रही।
इससे पहले, 2023 में जून में टेंडर संख्या 542 के लिए 6 फर्मों ने हिस्सा लिया था, लेकिन उनमें से 5 फर्मों को तकनीकी बिड में बाहर कर दिया गया था। इसका मकसद चहेती फर्म को फायदा पहुंचाना था। नतीजा यह हुआ कि 14 करोड़ रुपये का ठेका चहेती फर्म मैसर्स आर.सी. इंटरप्राइजेज को दिया गया, जबकि इसकी वास्तविक वैल्यू 10 करोड़ 80 लाख रुपये थी।
सीएलपीसी की बैठक से पहले ही वर्क ऑर्डर
टेंडर प्रक्रिया की मंजूरी के लिए जयपुर डिस्कॉम की सीएलपीसी (CLPC) की बैठक 9 अक्टूबर 2023 को बुलाई गई थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वर्क ऑर्डर 5 अक्टूबर को ही जारी कर दिया गया। इसके ठीक बाद राजस्थान में विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लग गई थी। इससे साफ जाहिर होता है कि चुनावों से पहले जल्दबाजी में यह प्रक्रिया पूरी की गई।
यहां देखें ‘घोटाले से जुड़े सभी दस्तावेज
इस बारे में हमने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और जयपुर विद्युत वितरण निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक आर.एन. कुमावत से उनका पक्ष जानने का भरसक प्रयास किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं साधा जा सका।
इस सन्दर्भ में वे यदि कुछ कहना चाहते हैं तो उनकी टिप्पणी भी इसमें शामिल कर दी जाएगी।
इस पूरे घोटाले से स्पष्ट है कि राजस्थान में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का दुरुपयोग किया गया। नियमों को दरकिनार करते हुए चहेती फर्म को ठेका देने का यह मामला चुनावी फंड जुटाने की साजिश से जुड़ा प्रतीत होता है। अब देखना यह है कि इस पर कोई कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाता है।