Waqf Law Twist: वक्फ़ कानून को लेकर चल रही बहस अब एक नए मोड़ पर पहुंच गई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस कानून पर पीछे हटने का संकेत तो दे दिया है, लेकिन इसके पीछे की असली रणनीति अब चर्चा का विषय बन गई है। क्या यह एक हार है या फिर सोची-समझी सियासी चाल?
दरअसल, जब वक्फ़ संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की शुरुआत में ही साफ कर दिया कि सरकार किसी तरह की अंतरिम रोक नहीं चाहती।
लेकिन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा — जब मामला कोर्ट में है, तब किसी भी स्थिति में बदलाव नहीं होना चाहिए। इस एक लाइन से कोर्ट का रुख साफ हो गया। यही संकेत सरकार ने तुरंत भांप लिया।
इसी के बाद सरकार ने खुद 3 बड़ी बातें कोर्ट में कही।
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सरकार की तीन बड़ी घोषणाएं:
अगले एक हफ्ते तक वक्फ़ कानून में कोई बदलाव नहीं होगा।
‘वक्फ़ बाय यूजर’ वाली संपत्तियां, रजिस्टर्ड हो या नहीं — वैध मानी जाएंगी।
राज्य सरकारें अभी कोई नया वक्फ़ बोर्ड या काउंसिल नहीं बनाएंगी।
याचिकाकर्ता खुश हुए
जैसे ही ये बातें कोर्ट में दर्ज हुईं, विपक्ष ने इसे अपनी जीत बता दिया।
असदुद्दीन ओवैसी बोले — ये सरकार की ‘स्वैच्छिक वापसी’ है, लेकिन असल में ये स्टे जैसा ही है।
आप नेता अमानतुल्लाह खान ने कहा — बीजेपी की ‘बांटों और राज करो’ राजनीति की हार हुई है।
कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कोर्ट के रुख को संतुलित कहा।
लेकिन सरकार का नजरिया थोड़ा अलग है…
Waqf Law Twist: सरकार इसे हार नहीं मान रही है। बल्कि इसे एक ‘सम्मानजनक वापसी’ के तौर पर देखा जा रहा है। सरकार को अंदेशा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट सीधा स्टे दे देता, तो यह मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की एक बड़ी पहल पर झटका होता। इसलिए, कोर्ट की दिशा को समझते हुए खुद पीछे हटना बेहतर समझा गया।
क्या होगा सरकार का अगला कदम?
अब सरकार 5 मई को सुप्रीम कोर्ट में अपना लिखित जवाब देगी। सरकार का तर्क यह होगा कि ‘वक्फ़ बाय यूज़र’ जैसे प्रावधानों में गड़बड़ियां हैं। इसलिए नया कानून ज़रूरी है। सरकार अदालत में सबूत भी पेश करेगी — जैसे कि दिल्ली हाई कोर्ट की ज़मीन पर वक्फ़ का दावा किया गया था। कोर्ट ने खुद माना है कि कुछ मामलों में इस कानून का गलत इस्तेमाल हुआ है। इसलिए सरकार को उम्मीद है कि कोर्ट उसका पक्ष समझेगा।
कोर्ट उन बिंदुओं की जांच करेगा, जहाँ गड़बड़ियाँ बताई जा रही हैं। नियमों में बदलाव या संशोधन संभव है। “सुधार बनाम भेदभाव” की बहस के बीच राजनीतिक लड़ाई तेज होगी। “ज़मीन का न्याय” और “धार्मिक संतुलन” जैसे मुद्दों से बीजेपी अपने पक्ष में नैरेटिव सेट करेगी।
क्या टाइमिंग भी मायने रखती है?
CJI की रिटायरमेंट से पहले सुनवाई:
इस मामले की टाइमिंग भी खास है। 5 मई को जब सरकार जवाब देगी, उसके ठीक 8 दिन बाद चीफ जस्टिस संजीव खन्ना रिटायर हो जाएंगे। उनकी जगह जस्टिस बी.आर. गवई मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। यानि केस की अगली सुनवाई में बेंच बदल सकती है। इससे मामले की दिशा भी प्रभावित हो सकती है। हालांकि, कोर्ट स्वतंत्र है और निष्पक्ष भी।
अंदर की बात: सरकार की रणनीति, CAA जैसा ही गेम प्लान?
सरकार के रणनीतिकार मानते हैं कि यह CAA जैसा ही एक मॉडल है। पहले माहौल को शांत करना। विरोध की हवा ठंडी पड़ने देना। फिर कानून को लागू करना — अपने समय और सुविधा से। इस रणनीति से सरकार कानूनी और सियासी दोनों मोर्चों पर बचाव कर लेती है।
सरकार जानती थी कि अगर कोर्ट ने सीधे रोक लगा दी, तो नुकसान ज़्यादा होता। इसलिए उसने खुद ही एक सम्मानजनक रास्ता चुना। वैसे भी कानून अभी लागू नहीं हुआ है। यह बात बहुत मायने रखती है कि वक्फ कानून अभी सिर्फ कागज़ों पर है। वास्तव में लागू तब होगा जब उसके नियम बनाए जाएंगे। इसके नियम यानी Rules अभी बने ही नहीं हैं।
सरकार के पास अभी पूरा समय है। वह चाहें तो चार महीने बाद भी नियम ला सकती है, या दो साल बाद भी। इससे पहले सरकार CAA पर भी यही कर चुकी है। माना जा रहा है कि वक्फ कानून पर भी वही मॉडल अपनाया जा रहा है। वहां भी चार साल तक सिर्फ कानून बना रहा, लागू नहीं किया गया। जब माहौल ठंडा हुआ, तब जाकर नियम लाए गए।
यानी ये सरकार की स्ट्रैटजी का हिस्सा है – पहले विरोध टालो, बाद में कानून लागू करो। माना जा रहा है कि इसके लिए भी अब एक ऐसा वक्त चुना जाएगा जब विपक्ष सुस्त हो और जनता का ध्यान किसी और मुद्दे पर हो। बिलकुल वैसा ही जैसा सरकार ने CAA (नागरिकता कानून) के साथ किया था।
एक कदम पीछे, दो कदम आगे?
बड़ा सवाल यह नहीं है कि “सरकार ने पीछे क्यों हटना चुना”, बल्कि यह है कि उसकी अगली चाल क्या है? सुप्रीम कोर्ट में लिया गया यह रुख़ हार नहीं, बल्कि रणनीतिक विराम है — ताकि हालात शांत हों और आने वाले समय में कानून को लागू करने की ज़मीन बने।
यह ‘पॉलिटिकल मैनेजमेंट’ का हिस्सा है — जहां टकराव की बजाय टालना बेहतर रणनीति मानी जाती है। वक्फ संशोधन फिलहाल ठहर गया है, लेकिन पूरी तरह रुका नहीं है।
जैसे-जैसे कोर्ट की टाइमलाइन और राजनीतिक समीकरण बदलेंगे, ये तय होगा कि मोदी सरकार सिर्फ़ समय ले रही है या फिर बड़ी कानूनी-पॉलिटिकल छलांग की तैयारी में है।
वक्फ कानून की जंग अभी शुरू हुई है — और इसमें सियासी ताप और बढ़ने वाला है।
आप क्या सोचते हैं? क्या यह स्मार्ट पॉलिटिक्स है या दबाव में लिया गया स्टेप बैक? हमें ज़रूर बताएं।
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