BJP-AIADMK Alliance: 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव की तैयारी ज़ोरों पर है। राजनीति का माहौल पूरी तरह से गरमाया हुआ है। नई रणनीतियाँ बन रही हैं। पुराने गठबंधन टूटे हैं, नए बन रहे हैं। रंजिशें भी नए रंग में सामने आ रही हैं। अब तक राज्य की सत्ता पर दो दलों का दबदबा रहा है – डीएमके और एआईएडीएमके। दोनों द्रविड़ विचारधारा की राजनीति के बड़े चेहरे रहे हैं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। बीजेपी ने मैदान में नई ऊर्जा के साथ एंट्री मारी है।
हाल ही में बीजेपी ने एआईएडीएमके से फिर हाथ मिला लिया है। यह गठबंधन तमिलनाडु की राजनीति को एक नई दिशा दे सकता है। अब लड़ाई सिर्फ दो दलों की नहीं रह गई है। चुनाव अब बहुपक्षीय हो चुका है। हर मोड़ पर समीकरण बदल रहे हैं। हर मोड़ पर नए खिलाड़ी आ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या यह नया गठबंधन डीएमके के मजबूत किले को तोड़ पाएगा?
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इसका जवाब सिर्फ नारों और भाषणों में नहीं मिलेगा। हकीकत ज़मीनी जुड़ाव से सामने आएगी। जनता के साथ भरोसे की बात करनी होगी। काम दिखाना होगा। ऐसी कहानी गढ़नी होगी जिससे लोग खुद को जोड़ सकें।
2026 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु का मतदाता अब एक बेहद दिलचस्प चुनाव का गवाह बनने जा रहा है। यह चुनाव हाल के वर्षों का सबसे बड़ा, सबसे चुनौतीपूर्ण और सबसे अनिश्चित चुनाव साबित हो सकता है।
द्रविड़ बनाम राष्ट्रवाद: बीजेपी की असली चुनौती
तमिलनाडु की राजनीति द्रविड़ विचारधारा में गहराई से रची-बसी है। यहाँ की राजनीति तमिल अस्मिता, भाषा और सामाजिक न्याय के इर्द-गिर्द घूमती है। डीएमके और एआईएडीएमके दशकों से इसी आधार पर सत्ता में आती रही हैं। इन पार्टियों ने क्षेत्रीय स्वाभिमान को हमेशा प्राथमिकता दी है। वहीं, भाजपा के लिए यह ज़मीन अब तक मुश्किल साबित हुई है। तमिल मतदाताओं से भावनात्मक और वैचारिक जुड़ाव बनाना भाजपा के लिए चुनौती रहा है। पार्टी को अक्सर बाहरी माना गया है। स्थानीय मुद्दों से उसका जुड़ाव कमजोर दिखता है।
देश के कई राज्यों में भाजपा ने अपना मज़बूत वोटबैंक बनाया है। लेकिन तमिलनाडु अब भी उसके लिए एक कठिन राज्य बना हुआ है। यहाँ पार्टी को सांस्कृतिक रूप से अलग देखा जाता है। उत्तर भारत, हिंदी और हिंदुत्व से जुड़ी उसकी छवि लोगों को दूर लगती है। यही वजह है कि भाजपा को डीएमके और एआईएडीएमके जैसे दलों के पारंपरिक गढ़ों में सेंध लगाने में दिक्कत आती रही है। स्थानीयता के सामने भाजपा की राष्ट्रवाद वाली छवि अब तक कारगर नहीं रही।
2024 में झटका, अब 2026 पर नज़र:
इस बार भाजपा बैकफुट पर नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भले सीटें न मिली हों, लेकिन वोट शेयर में हुई वृद्धि ने पार्टी को नई उम्मीद दी है। पार्टी को ये एहसास हो चुका है – अकेले लड़ना मुश्किल है। अब भाजपा “गर्व” की बजाय “व्यावहारिकता” की राह पर चल रही है — यानी अकेले चलने के बजाय लोकल गठजोड़, जमीनी काम और नया नैरेटिव।
पंचायतों से सत्ता तक: बीजेपी की नई रणनीति
बीजेपी ने अब राष्ट्रीय मुद्दों की जगह लोकल गवर्नेंस पर फोकस शुरू किया है। डीएमके और एआईएडीएमके पर आरोप है कि इन्होंने पंचायतों को कमज़ोर किया। 2024 के बाद भाजपा ने अपना नैरेटिव पूरी तरह से रीसेट किया है। अब पार्टी ‘राष्ट्रवाद’ या ‘हिंदुत्व’ के पारंपरिक एजेंडे से हटकर, “लोकल गवर्नेंस” को फ्रंटफुट पर ला रही है — यानी ज़मीन के मुद्दों पर ज़मीन से बात।
BJP की नई ग्राउंड स्ट्रैटेजी:
गांव-गांव रिपोर्ट कार्ड: पंचायत स्तर पर समस्याओं, भ्रष्टाचार और सत्ता की उपेक्षा को उजागर करने वाली रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
2026 पंचायत मेनिफेस्टो: गांवों के लिए अलग घोषणा-पत्र जिसमें पानी, सड़क, स्कूल, रोजगार जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा जाएगा।
पदयात्रा मिशन: नेता और कार्यकर्ता गांवों में पैदल जाकर जनता से सीधी बात करेंगे — “दिल्ली नहीं, डिसीजन अब पंचायत से होगा” इस टैगलाइन के साथ।
नैरेटिव शिफ्ट: BJP अब खुद को “पंचायतों का सच्चा साथी” और DMK को “सत्ता की भूखी पार्टी” के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है।

क्यों ज़रूरी बना बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन?
हालांकि पहले इनके बीच दूरियाँ थीं, लेकिन अब दोनों ने फिर से हाथ मिला लिए हैं — और इसकी कई वजहें हैं।
एआईएडीएमके को बीजेपी की ज़रूरत क्यों?
जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके कमजोर हो चुकी है।
बीजेपी केंद्र में है, उसके पास संसाधन और रणनीतिक ताकत है।
डीएमके को हराने के लिए मज़बूत साथी चाहिए।
बीजेपी को एआईएडीएमके की ज़रूरत क्यों?
बीजेपी के पास राज्य में मजबूत जमीनी कैडर नहीं है।
वोटों के बंटवारे से डीएमके को फायदा हो जाता है।
गठबंधन से सीटें जीतने की उम्मीद बढ़ेगी।
गठबंधन की शर्तें – स्पष्ट लेकिन संवेदनशील
मुख्यमंत्री चेहरा: ई.के. पलानीस्वामी रहेंगे। बीजेपी ने स्वीकार किया।
दखल नहीं: बीजेपी, एआईएडीएमके के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
नेतृत्व बदलाव: बीजेपी ने के. अन्नामलाई को हटाया जो गठबंधन के खिलाफ थे।
लेकिन राह आसान नहीं…
जमीनी स्तर पर तनाव: बीजेपी और एआईएडीएमके के कार्यकर्ताओं में पहले से ही तनाव है। अन्नामलाई के बयानों से खटास और बढ़ गई थी। अब ज़मीनी स्तर पर समन्वय बनाना बड़ी चुनौती है।
विचारधारा की खाई: एआईएडीएमके की राजनीति तमिल गौरव और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है, जबकि बीजेपी की पहचान हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़ी है। NEET, वक्फ कानून जैसे मुद्दों पर दोनों की राय अलग है।
अल्पसंख्यक वोटों का खतरा: BJP से गठबंधन करने पर मुस्लिम और ईसाई समुदाय AIADMK से नाराज़ हो सकता है। खासकर जब विजय की नई पार्टी TVK इन्हीं वोटों को निशाना बना रही हो।
अन्नामलाई फैक्टर: उन्हें हटा तो दिया गया है, लेकिन उनके समर्थकों की नाराज़गी से BJP में अंदरूनी असंतोष पनप सकता है।
विश्वास की कमी: एआईएडीएमके को डर है कि BJP लंबे समय में उनकी पार्टी को खत्म कर सकती है। इस संदेह को दूर करना जरूरी है।
नए चेहरे, नई पार्टियाँ: खेल बिगाड़ सकते हैं?
विजय की नई पार्टी TVK: सुपरस्टार विजय ने “तमिझगा वेत्रि कज़गम” बनाकर एक नई धुरी तैयार की है। युवा और अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच उनकी पकड़ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। युवा और शहरी वर्ग में अच्छी पकड़ है। विजय की साफ-सुथरी छवि और अल्पसंख्यक पृष्ठभूमि उसे बड़ा खिलाड़ी बना सकती है।
अन्य छोटी पार्टियाँ: PMK, AMMK, NTK आदि छोटे दल वोट शेयर में फर्क डाल सकते हैं — गठबंधन को ताकत भी दे सकते हैं। PMK, AMMK (टीटीवी दिनाकरन), NTK जैसे दल भी गठबंधन में आ सकते हैं। ये सीटें तो बढ़ाएंगे लेकिन तालमेल को जटिल भी बनाएंगे।
2026 का चुनाव: डीएमके का सबसे बड़ा इम्तिहान?
भाजपा-एआईएडीएमके के फिर से साथ आने से 2026 का चुनाव एक कड़ी टक्कर वाला होता जा रहा है।
डीएमके की रक्षा रणनीति: मजबूत तमिल पहचान अभियान और भाजपा की “बाहरी” छवि को निशाना बनाने की उम्मीद है। डीएमके तमिल अस्मिता, भाषा और केंद्र सरकार विरोध जैसे मुद्दों को उभार सकती है।
गठबंधन की जवाबी रणनीति: स्थानीय विकास, पंचायतों के सशक्तिकरण और डीएमके विरोधी एकीकृत संदेश पर ध्यान केंद्रित करना।
भाजपा-एआईएडीएमके का गठबंधन डीएमके के लिए 2026 में बड़ी चुनौती बन सकता है। डीएमके के प्रभुत्व को न केवल गठबंधन से चुनौती मिलेगी, बल्कि बदलती सार्वजनिक प्राथमिकताओं, जातिगत गणनाओं और युवाओं के असंतोष से भी चुनौती मिलेगी। गठबंधन की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वे कितनी एकजुटता से जनता तक अपनी बात पहुँचा पाते हैं
क्या डीएमके का किला टूटेगा?
तमिलनाडु की चुनावी जंग अब दो दलों की नहीं, बल्कि एआईएडीएमके-बीजेपी बनाम ‘बाकी सभी’ की लड़ाई बन चुकी है। डीएमके अब तक सत्ता में मजबूत बनी रही है। लेकिन इस बार बीजेपी-एआईएडीएमके का गठबंधन उसे कड़ी टक्कर देने को तैयार है।
डीएमके की रणनीति: तमिल अस्मिता, भाषा और केंद्र सरकार विरोध को मुद्दा बनाएंगे। बीजेपी को “बाहरी पार्टी” बताकर घेरेंगे।
गठबंधन की रणनीति: पंचायतों को मजबूत बनाने की बात करेंगे। डीएमके को सत्ता के केंद्रीकरण की पार्टी बताएंगे। “लोकल मुद्दे – लोकल समाधान” को प्रचार का आधार बनाएंगे।
जनता की भूमिका: युवा मतदाता, पहली बार वोट देने वाले, शहरी मध्यम वर्ग और ग्रामीण महिलाएं—इनका झुकाव नतीजे तय करेगा।
मुख्य निष्कर्ष: क्या कहना चाहती है ये पूरी तस्वीर
- बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन सिर्फ राजनीतिक नहीं, रणनीतिक प्रयोग है।
- बीजेपी अपने एजेंडे को “राष्ट्रीय” से “स्थानीय” की ओर ले जा रही है।
- सफलता समन्वय, साफ संदेश और भरोसे पर निर्भर करेगी।
- डीएमके अब भी मज़बूत है लेकिन उसे चुनौती ज़रूर मिलेगी।
- विजय की पार्टी पूरे चुनाव का ट्रैक बदल सकती है।
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