Bihar Election: बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने आखिरकार एनडीए से नाता तोड़ लिया है। लोकसभा चुनाव 2024 में भतीजे चिराग से करारी शिकस्त खाने के बाद से ही पारस की राजनीतिक स्थिति डगमगाई हुई थी, और अब उन्होंने खुलकर अपने रास्ते अलग कर लिए हैं। यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले उठाया गया है, जिससे इसके सियासी मायने और भी गहरे हो गए हैं।
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Bihar Election: चिराग ने लोकसभा चुनाव में लिया बदला
2020 में जब रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी में टूट हुई, तब पशुपति पारस ने चिराग को चौंकाते हुए पार्टी पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने पार्टी के 6 में से 5 सांसदों को तोड़कर चिराग को अकेला छोड़ दिया। उस वक्त भले ही पारस को केंद्र में मंत्री पद मिल गया हो, लेकिन समय ने करवट ली और 2024 के लोकसभा चुनाव में सारी बाजी चिराग के हाथ लग गई।
चिराग पासवान की नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने एनडीए के तहत पांच में से पांच सीटें जीतीं, जबकि पशुपति पारस को भाजपा ने एक भी सीट नहीं दी। यही नहीं, चिराग को मोदी सरकार में मंत्री पद भी मिला, जिससे यह साफ हो गया कि एनडीए में अब चाचा की कोई राजनीतिक उपयोगिता नहीं बची है।
Bihar Election: एनडीए से अलग होकर क्या संकेत दे रहे हैं पारस?
एनडीए से अलग होने की घोषणा करते हुए पशुपति पारस ने कहा कि अब उनकी पार्टी का एनडीए से कोई लेना-देना नहीं रहेगा। उन्होंने बिहार की नीतीश सरकार को दलित विरोधी बताते हुए संकेत दिया कि वे प्रदेश भर में सक्रिय रहेंगे और सभी 243 विधानसभा सीटों पर अभियान चलाएंगे। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि अगला सियासी कदम क्या होगा, लेकिन यह इशारा जरूर कर दिया कि नई राजनीतिक संभावनाएं तलाशने की तैयारी है।
Bihar Election: क्या अब INDI गठबंधन में जाएंगे पारस?
एनडीए से नाता तोड़ने के बाद बड़ा सवाल उठ रहा है-क्या पशुपति पारस अब विपक्षी INDI गठबंधन का रुख करेंगे? बिहार में आरजेडी प्रमुख लालू यादव पहले से ही एनडीए के खिलाफ मजबूत गठबंधन तैयार कर रहे हैं। चूंकि पारस एक दलित नेता हैं और लंबे समय से रामविलास पासवान की विरासत से जुड़े रहे हैं, इसलिए लालू यादव के लिए उन्हें अपने खेमे में शामिल करना सामाजिक समीकरणों के लिहाज से फायदेमंद हो सकता है।
हालांकि, यह भी उतना ही सच है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार नहीं बना सकी। इस बार लालू और तेजस्वी यादव ऐसा कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे। ऐसे में INDI गठबंधन पशुपति पारस को साथ लेने का दांव खेल सकता है, बशर्ते पारस खुद इसके लिए तैयार हों।
अब क्या चिराग बनेंगे बिहार NDA का चेहरा?
जिस तरह से एनडीए ने लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान पर भरोसा जताया और उन्हें पांच सीटें दीं, यह तय माना जा रहा है कि भाजपा अब बिहार में दलित चेहरे के तौर पर चिराग को ही आगे करेगी। पशुपति पारस की विदाई इस रणनीति का हिस्सा भी हो सकती है। चिराग अब अपनी पार्टी के साथ न सिर्फ केंद्र में मजबूत स्थिति में हैं, बल्कि बिहार में भी उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है।
चाचा-भतीजे की सियासी जंग अब भी जारी
बिहार की राजनीति में चाचा-भतीजे की यह लड़ाई अब दूसरे चरण में प्रवेश कर चुकी है। जहां चिराग अपने पिता की विरासत को मजबूत करते हुए सत्ता के केंद्र में हैं, वहीं पारस अपनी राजनीतिक पहचान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। एनडीए से अलग होकर उन्होंने अपने लिए एक नई राह चुनी है, लेकिन यह राह कितनी सफल होगी, इसका फैसला बिहार की जनता और आगामी विधानसभा चुनाव करेंगे।
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