Nimisha Priya: केरल की भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जिन्हें यमन में 2017 की हत्या के आरोप में मृत्युदंड (Death Sentence) सुनाई गई थी, अब बड़ी राहत में हैं। भारत के ग्रैंड मफ्टी कान्तापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलैयार के कार्यालय ने बताया कि यमन की अज्ञानात न्याय व्यवस्था के तहत बनी यह सजा अब पूरी तरह रद्द कर दी गई है। इस निर्णय को यमन की राजधानी सना में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक द्वारा सक्षम बनाया गया है।
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Nimisha Priya: कैसी थी शुरुआत?
निमिषा के निधन की तारीख 16 जुलाई निर्धारित की गई थी, लेकिन फांसी को एक दिन पहले स्थगित कर दिया गया था। यह सक्रिय कदम ग्रैंड मफ्टी की अहम पहल का परिणाम था, जिन्होंने हस्तक्षेप करते हुए यमनी अधिकारियों से पुनर्विचार की अपील की थी। अब, इस सजा को पूरी तरह से रद्द करने का आदेश उमरिया हुआ है।
Nimisha Priya: परिवार की लड़ाई और मध्यस्थ वार्ता
निमिषा का परिवार — पति थॉमस एवं 13 वर्षीय बेटी मिशेल — यमन जाकर इस मुद्दे को हल करने की कोशिशों में लगा हुआ था। मिशेल ने डॉ. के. ए. पॉल के साथ एक वीडियो संदेश जारी करते हुए अपनी माँ से मिलने की अपील की थी,’आई लव यू, मम्मी…।’
इस बीच, Save Nimisha Priya International Action Council ने विदेश मंत्रालय से आवेदन कर यमन में वार्ता टीम भेजने की अनुमति माँगी, जिसमें कानूनी सलाहकार, धार्मिक प्रतिनिधि व नागरिक समाज के लोग शामिल हैं।
Nimisha Priya: सजा किसलिए थी?
निमिषा को 2017 में यमन नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। आरोप था कि उन्होंने महदी को केटामाइन की इंजेक्शन देकर मौत के घाट उतार दिया था। उनका मकसद पासपोर्ट और दस्तावेज मुक्त कराना था, लेकिन वस्तुस्थिति गंभीर घातक साबित हुई। उन्हें वर्ष 2020 में मृत्युदंड सुनाया गया, जिसका सुप्रीम ज्यूडिशियल कौंसिल ने 2023 में भी बरक़रार रखा।
न्यायालय की सुनवाई अरबी भाषा में हुई थी, जबकि निमिषा वह भाषा नहीं जानती। दोषारोपण के दौरान उन्हें वकील या अनुवादक की सुविधा नहीं दी गई, जिसकी वजह से उनके वकील ने पुनर्विचार की मांग की।
ग्रैंड मफ्टी की होती मध्यस्थता
ग्रैंड मफ्टी कान्तापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलैयार ने यमन में धार्मिक और सरकारी प्रतिनिधियों से मिलकर मामले को वार्ता में उठाया। यमन के विद्वानों और सना के अधिकारियों सहित एक उच्च स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया कि निमिषा की सजा को रद्द किया जाए। ग्रैंड मफ्टी कार्यालय के मुताबिक, यह पूरा फैसला देवस्थलों और न्यायिक विचार-विमर्श का परिणाम था।
यह क्यों मायने रखता है?
इस घटना से स्पष्ट होता है कि डिप्लोमैटिक प्रयास और धार्मिक-अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता किस प्रकार एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी जाल को प्रभावी रूप से चुनौती दे सकती है। भारत की विदेश और न्यायिक नीतियाँ मानवता और मानवीयता के सिद्धांत को सामने रखकर कार्य करने की राह चुन रही हैं।
यह घटनाक्रम सिर्फ निमिषा को अमानवीय मौत से बचाने की नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा की दिशा में भारत की सक्रिय भूमिका का उदाहरण है। ग्रैंड मफ्टी का हस्तक्षेप, परिवार की मजबूरी और धार्मिक समन्वय इस जटिल मामले को मानवतावादी मुहिम में तब्दील करता है। अब असली लड़ाई वो है, जब यह रिहाई स्थायी हो और भारत सरकार पूरी तरह से निमिषा के सुरक्षित घर वापसी में सक्षम हो।
हालांकि केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी रद्द होने के बारे में अब तक केंद्र सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
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