Agusta Helicopter Crash: मई 2022 को छत्तीसगढ़ में हुए अगस्ता-109 हेलीकॉप्टर क्रैश को लेकर अब एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं – क्या इस हादसे को भी फाइलों में दबा दिया जाएगा या नई सरकार इसके दोषियों पर कार्रवाई करेगी? पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में हुई इस दुर्घटना को लेकर DGCA की विस्तृत रिपोर्ट कई चौंकाने वाले खुलासे करती है, लेकिन तत्कालीन बघेल सरकार ने न तो रिपोर्ट को सार्वजनिक किया और न ही किसी अधिकारी पर कोई ठोस कार्रवाई कर जवाबदेही तय की। जिन दो पायलटों ने उस हादसे में अपनी जान गंवाई, उनकी मौत पर सरकार का यह मौन आज एक राजनीतिक और नैतिक अपराध बनकर खड़ा है।
अब जबकि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में नई सरकार है, जनता की निगाहें उन पर टिकी हैं- क्या वह इस रिपोर्ट को फिर से जीवित करेंगे, या यह भी पिछली सरकार की चुप्पी की तरह धूल फांकती रहेगी?
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Agusta Helicopter Crash: DGCA की रिपोर्ट के मुख्य खुलासे:
- हेलीकॉप्टर का मेंटेनेंस रिकॉर्ड गायब
जाँच समिति को हेलीकॉप्टर की उड़ान और मेंटेनेंस से जुड़े मूल दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं कराए गए। - टेलरोटर की समय सीमा समाप्त हो चुकी थी, फिर भी उसे बदले बिना उड़ान कराई गई।
- फिक्स्ड विंग बी-200 विमान भी पहले से ही ग्राउंडेड था, यानी विमानन विभाग की कार्यप्रणाली लगातार लापरवाह थी।
- हवाई सुरक्षा से जुड़े आंतरिक ऑडिट को केवल औपचारिकता के रूप में लिया गया, पांच वर्षों में किसी भी ऑडिट से कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला।
Agusta Helicopter Crash: क्या बघेल ने जानबूझकर दबाई जांच रिपोर्ट?
DGCA ने 136 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि इस हादसे के पीछे मानवीय लापरवाही और प्रणालीगत विफलता प्रमुख कारण हैं। लेकिन बघेल सरकार ने इस पर चुप्पी साधे रखी। रिपोर्ट को चुनाव से पहले सौंपा गया, लेकिन किसी पर प्राथमिकी नहीं हुई, न ही कोई विभागीय जांच।
सूत्रों का कहना है कि भूपेश बघेल इस फाइल को इसलिए दबाए बैठे रहे क्योंकि इसमें कोई ऐसा चेहरा भी शामिल था जो उनके नज़दीकी सर्कल से जुड़ा है। अगर इस पर कार्रवाई होती, तो मामला सीधे CMO तक जा सकता था।
Agusta Helicopter Crash : क्या अगली दुर्घटना का इंतज़ार है?
DGCA की चेतावनी साफ है – अगर रिपोर्ट पर अमल नहीं हुआ, तो ऐसी घटनाएं फिर दोहराई जा सकती हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी लापरवाही नहीं, बल्कि सुरक्षा और जवाबदेही के साथ किया गया समझौता है।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में भी एक सरकारी हेलीकॉप्टर दुर्घटना का शिकार हुआ था, लेकिन तब की सरकार ने संवेदनशीलता का परिचय दिया और प्रक्रिया को दुरुस्त किया गया। बघेल सरकार में न सिर्फ दुर्घटना हुई, बल्कि उसे दबाने का कुप्रयास भी सामने आया।
जनता जानना चाहती है: कौन है वो ‘करीबी’?
क्या यह चुप्पी महज प्रशासनिक सुस्ती थी या जानबूझकर की गई ढिलाई? आखिर भूपेश बघेल किसे बचाना चाहते थे? क्या दो पायलटों की शहादत पर भी सत्ता की राजनीति भारी है?
अब जबकि नई सरकार है, जनता की नज़रें मुख्यमंत्री विष्णु देव साय पर हैं कि क्या वे इस मामले में पुन: जांच और दोषियों पर कार्रवाई के आदेश देंगे, या यह रिपोर्ट भी फाइलों में दबी रह जाएगी।
यह सिर्फ एक हादसा नहीं था, यह सवाल है सिस्टम की साख का।
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