Retail Inflation: वर्ष 2025 में खुदरा और थोक महंगाई दर में लगातार कमी आ रही है। जनवरी 2025 में जहां खुदरा महंगाई दर 4.26% थी, वहीं जुलाई में यह घटकर 2.10% पर आ गई, जो 6 साल का न्यूनतम स्तर है। इसी तरह, थोक महंगाई दर जनवरी के 2.31% से घटकर -0.13% पर आ गई, जो 20 महीने का न्यूनतम स्तर है। लेकिन इस आंकड़े से लोगों को राहत नहीं मिल रही। आलू 35-40 रुपए किलो, प्याज 35 रुपए किलो, हरी सब्जियां महंगी, दूध-दही की कीमत स्थिर और दवाओं-शिक्षा-यातायात में बढ़ोतरी से आम आदमी की जेब पर बोझ बना हुआ है।
Retail Inflation: क्यों नहीं मिल रही राहत?
दरअसल, महंगाई दर का आंकड़ा पिछले साल के समान महीने से तुलना करके तय होता है।
जैसे, जून 2024 में आलू 45 रुपए किलो था, जून 2025 में यह 35-40 रुपए किलो बिक रहा है। कीमत कम हुई, लेकिन जब 35-40 रुपए भी ज्यादा लगते हैं, तब लोगों को राहत महसूस नहीं होती। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले साल भी चीजें महंगी थीं और इस साल भी कीमतें ऊंची बनी हुई हैं।
Retail Inflation: महंगाई दर घटी, लेकिन महंगाई बढ़ी
जून 2025 में खुदरा महंगाई दर 2.1% रही। इसका अर्थ है कि जो सामान जून 2024 में 100 रुपए का था, वह जून 2025 में 102.1 रुपए में मिल रहा है। पिछले साल जून में यह दर 5.08% थी, यानी 2023 में 100 रुपए का सामान 2024 में 105.08 रुपए में मिला। मतलब 5% की तुलना में 2% महंगाई दर कम है, लेकिन कीमतें पहले की तुलना में बढ़ी हैं। इस वजह से आम आदमी को महंगाई में कमी का असर नहीं दिखता।
खाने-पीने की चीजें सस्ती पर जेब पर बोझ
जून में खाद्य महंगाई दर -1.06% रही, यानी 100 रुपए की चीजें 98.94 रुपए में मिल रही हैं। लेकिन मई 2025 की तुलना में जून में 1.08% महंगाई बढ़ी, यानी जो सामान मई में 97.90 रुपए का था, वह जून में 98.94 रुपए में मिल रहा है। दूसरी ओर, शिक्षा 4.37%, स्वास्थ्य सेवाएं और दवाएं 4.43%, आवास 3.24% और यातायात 3.90% महंगे हुए हैं, जिससे घर का बजट प्रभावित हो रहा है।
थोक महंगाई दर भी निगेटिव में, पर क्यों नहीं दिखा असर?
थोक महंगाई दर -0.13% रही है, जो दर्शाता है कि थोक स्तर पर चीजें सस्ती हुई हैं। परंतु खुदरा बाजार में ट्रांसपोर्ट, वितरण लागत, रिटेल मुनाफा और टैक्स के कारण उपभोक्ता को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए थोक में गिरावट के बावजूद सब्जियों, फलों, अनाज और अन्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर बनी रहती हैं।
अन्य वजहें जो महंगाई में कमी का असर खत्म करती हैं
- फिक्स्ड खर्च में बढ़ोतरी: स्कूल फीस, मेडिकल खर्च, किराया और बिजली-पानी का बिल हर साल बढ़ते हैं।
- वेतन स्थिर, खर्च बढ़े: लोगों की आय उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही जितनी तेजी से खर्च बढ़ रहा है।
- रोजमर्रा की चीजों की मांग में कमी नहीं: मांग बनी रहने से कीमतों में गिरावट सीमित रहती है।
- अचानक खर्च बढ़ने पर असर: बच्चों की फीस, बीमारियों पर खर्च, त्योहार पर बढ़ा खर्च जेब पर असर डालता है।
आगे क्या उम्मीद?
सरकार और आरबीआई का मानना है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट और आपूर्ति सुचारु रहने से आगे महंगाई नियंत्रित रहेगी। लेकिन पेट्रोल-डीजल के दाम, ग्लोबल सप्लाई चेन और मानसून की स्थिति इसका भविष्य तय करेगी। जब तक मूलभूत खर्च में स्थिरता नहीं आती, तब तक महंगाई दर में गिरावट का वास्तविक लाभ आम उपभोक्ता तक सीमित रूप से ही पहुंचेगा।
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