Pope Francis Death: विश्व भर के कैथोलिक समुदाय समेत करोड़ों लोगों के आध्यात्मिक गुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार को निधन हो गया। उनके निधन पर भारत सरकार ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए देशभर में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। गृह मंत्रालय ने जानकारी दी कि भारत में यह शोक मंगलवार 22 अप्रैल और बुधवार 23 अप्रैल को मनाया जाएगा, जबकि तीसरा दिन पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार के दिन के रूप में चिह्नित किया जाएगा। इस दौरान भारत में उन सभी सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, जहां इसे नियमित रूप से फहराया जाता है। साथ ही, किसी भी प्रकार के आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाएंगे।
Table of Contents
Pope Francis Death: लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे
पोप फ्रांसिस, जिनका मूल नाम जॉर्ज मारियो बर्गोलियो था, मार्च 2013 में 266वें पोप के रूप में चुने गए थे। वे रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे और अर्जेंटीना के बुएनोस आयर्स से ताल्लुक रखते थे। वे 88 वर्ष के थे और लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में उन्हें डबल निमोनिया भी हो गया था, जिसके चलते वह वेंटिलेटर पर चले गए थे। कुछ समय पूर्व स्वास्थ्य में सुधार के बाद वह घर लौटे थे, लेकिन सोमवार को वेटिकन ने उनके निधन की आधिकारिक पुष्टि की।
Pope Francis Death: भारत समेत दुनिया भर में शोक की लहर
भारत समेत दुनिया भर से नेताओं और धार्मिक संगठनों ने पोप फ्रांसिस के निधन पर शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘दुनिया के सबसे करुणामय और न्यायप्रिय नेताओं में से एक’ बताया। देश के कई राज्यों में स्थित चर्चों में प्रार्थना सभाएं आयोजित की जा रही हैं।
Pope Francis Death: वेटिकन और पोप की भूमिका
पोप, रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्मगुरु होते हैं। यह पद न केवल धार्मिक, बल्कि राजनयिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। वेटिकन सिटी, जो दुनिया का सबसे छोटा देश है (44 हेक्टेयर क्षेत्रफल और लगभग 800 की जनसंख्या), वहीं पोप का आधिकारिक निवास स्थान है। पोप को “ईश्वर का प्रतिनिधि” माना जाता है और उनकी भूमिका पूरी कैथोलिक दुनिया के लिए दिशा-निर्देश देने की होती है।
उत्तराधिकारी की तलाश
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद, नए पोप के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। वेटिकन ने 9 दिन का शोक घोषित किया है। इसके बाद, पोपल कॉन्क्लेव नामक प्रक्रिया के तहत कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स के सदस्य एकत्र होंगे और गुप्त मतदान से नए पोप का चयन करेंगे। कॉन्क्लेव में 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल्स ही वोट देने के पात्र होते हैं। फिलहाल 138 कार्डिनल ऐसे हैं जो इस प्रक्रिया में भाग लेंगे। इनमें भारत के चार कार्डिनल भी शामिल हैं।
कैसे होता है पोप का चुनाव
पोप का चुनाव बेहद पारंपरिक और गोपनीय प्रक्रिया के तहत होता है। चुनाव से पहले सभी कार्डिनल्स को सिस्टिन चैपल में बंद कर दिया जाता है। हर दिन चार चरणों में गुप्त मतदान होता है और किसी भी उम्मीदवार को दो-तिहाई बहुमत मिलना जरूरी होता है। जब किसी को पर्याप्त वोट मिल जाते हैं, तो मतपत्रों को जलाया जाता है और सफेद धुंआ निकलता है, जो सफल चुनाव का संकेत होता है। वहीं, असफल मतदान पर काला धुंआ दिखता है।
एक बार किसी कार्डिनल को पोप चुन लिया जाता है, तो वह अपने लिए एक नया नाम चुनते हैं और विशेष वेशभूषा पहनकर सेंट पीटर्स बेसिलिका की बालकनी से जनता को संबोधित करते हैं। इसी समय नए पोप के नाम की औपचारिक घोषणा होती है।
उत्तराधिकार की दौड़ में संभावित नाम
पोप फ्रांसिस के उत्तराधिकारी के तौर पर कुछ प्रमुख कार्डिनल्स के नाम सामने आ रहे हैं:
- पिएत्रो परोलिन (70), इटली: वेटिकन के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, और फ्रांसिस के सबसे करीबी माने जाते हैं।
- लुईस अंतोनियो टैगले (67), फिलीपींस: एशिया के पहले संभावित पोप माने जाते हैं, और समावेशिता के समर्थक हैं।
- फ्रिडोलिन अंबोंगो बेसुंगु (65), कांगो: अफ्रीका से एक मजबूत उम्मीदवार, रूढ़िवादी विचारों के लिए जाने जाते हैं।
- मत्तेओ जुप्पी (69), इटली: शांति मिशनों में सक्रिय और फ्रांसिस की विचारधारा के नजदीक माने जाते हैं।
- विम आइज्क (71), नीदरलैंड: पूर्व मेडिकल डॉक्टर और सबसे कड़े रूढ़िवादियों में गिने जाते हैं, तलाकशुदा विवाह को लेकर पोप फ्रांसिस की राय के विरोधी।
पोप फ्रांसिस की विरासत
पोप फ्रांसिस ने अपने जीवन में सादगी, करुणा और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी। उन्होंने चर्च को आधुनिक मुद्दों से जोड़ा, जैसे LGBTQ अधिकार, जलवायु परिवर्तन, और गरीबों के अधिकार। उन्होंने चर्च के भीतर पारदर्शिता और सुधार के लिए भी कई पहल कीं।
उनकी विरासत न केवल कैथोलिक समुदाय बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा रहेगी। उनका निधन वैश्विक धर्मनिरपेक्ष संवाद और सहिष्णुता की दिशा में एक बड़ी क्षति है। भारत ने पोप फ्रांसिस को श्रद्धांजलि देकर यह संदेश दिया है कि आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व की कोई सीमा नहीं होती – वह सभी धर्मों और संस्कृतियों के लिए प्रेरक हो सकता है।
यह भी पढ़ें-