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Supreme Court: ‘लड़के की गलती पर पिता का घर गिरा देना सही नहीं’, बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का हथौड़ा

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के मामलों पर सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई करना कानून के अनुरूप नहीं है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बुलडोजर एक्शन के मामलों पर सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई करना कानून के अनुरूप नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही किसी को दोषी करार दिया जाए, फिर भी उसके खिलाफ बुलडोजर से कार्रवाई करना कानून के खिलाफ है। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सख्त टिप्पणी की है और कहा है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ बिना कानूनी प्रक्रिया के बुलडोजर से कार्रवाई करना असंवैधानिक है। कोर्ट ने इस तरह की कार्रवाइयों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कानून के शासन के खिलाफ है।

संपत्तियों को ध्वस्थ करना असंवैधानिक

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख बताता है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियों को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन सर्वोपरि है, और किसी भी तरह की कार्रवाई कानून के दायरे में रहकर ही की जानी चाहिए। इस टिप्पणी से अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई की वैधता और इसके उपयोग के संदर्भ में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं, जो न्यायपालिका की भूमिका और कानूनी प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित करते हैं।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और राजस्थान में हुई बुलडोजर कार्रवाइयों का हवाला दिया गया है। इस याचिका में जमीयत ने आरोप लगाया है कि इन कार्रवाइयों में अल्पसंख्यक समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है। शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि अप्रैल 2022 में दंगों के तुरंत बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी में कई लोगों के घरों को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया था कि उन्होंने दंगे भड़काए थे।

याचिका में घरों पर बुलडोजर एक्शन पर रोक की मांग

याचिका में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अदालत से अपील की है कि सरकारों द्वारा आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने की इस प्रवृत्ति पर रोक लगाई जाए। जमीयत का कहना है कि यह कार्रवाई न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण भी है। सुप्रीम कोर्ट में दी गई इस याचिका में कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रथा को चुनौती दी गई है और इसे संविधान और कानून के खिलाफ बताया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगे सुझाव

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति को ध्वस्त करने के खिलाफ अखिल भारतीय दिशा-निर्देश बनाने पर विचार किया है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर संबंधित पक्षों से कहा है कि वे दो सप्ताह के भीतर अपने सुझाव प्रस्तुत करें।

कानून के अनुसार ही ध्वस्त हो अनधिकृत निर्माण

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुलडोजर कार्रवाई के मामलों में महत्वपूर्ण टिप्पणी की। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अनधिकृत निर्माण को भी केवल कानून के अनुसार ही ध्वस्त किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट किया कि राज्य के अधिकारी किसी भी आरोपी की संपत्ति को सजा के रूप में ध्वस्त नहीं कर सकते।

‘कोई दोषी हो तो भी बुलडोजर एक्शन कानून के खिलाफ’

पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि न केवल आरोपी का, बल्कि दोषी का घर भी इस तरह से ध्वस्त नहीं किया जा सकता। इस दृष्टिकोण से कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कानून का पालन किए बिना किसी की भी संपत्ति को जबरन ध्वस्त करना असंवैधानिक है और यह न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है।

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