Election Commission Missing Data: “एक देश, एक चुनाव” (One Nation One Election) के विचार को अमलीजामा पहनाने की कवायद चल रही है। सरकार इस विचार के लिए कानून बनाने की तैयारी कर रही है, लेकिन इसी बीच चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में एक आरटीआई के जरिए यह खुलासा हुआ है कि लोकसभा चुनाव 2024 के छह महीने बीत जाने के बाद भी आयोग अंतिम मतदान आंकड़े जारी नहीं कर पाया है। यह स्थिति न केवल आयोग की कार्यक्षमता पर सवाल उठाती है बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
लोकसभा चुनाव के परिणाम 4 जून 2024 को घोषित किए गए थे। लेकिन अभी तक आयोग ने मतदान के अंतिम आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए हैं। आरटीआई से पता चला है कि इन आंकड़ों की सत्यापन प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है।
चुनाव आयोग का दावा और वास्तविकता
चुनाव आयोग ने 2019 के बाद दावा किया था कि नई तकनीक अपनाने से मतदान के आंकड़े जल्दी जारी किए जा सकेंगे। लेकिन 2024 में भी यह संभव नहीं हो पाया। आरटीआई के जवाब में आयोग ने बताया कि मतदान के आंकड़ों की जांच और सत्यापन का कार्य अभी भी चल रहा है। आयोग ने यह भी कहा कि डेटा देशभर से मंगाया जाता है, जिसे संकलित करने और सत्यापित करने में समय लगता है।
हालांकि, यह देरी अब गंभीर बहस का विषय बन गई है। सत्यापन में इतनी लंबी देरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति आयोग की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न लगाती है। अगर आंकड़े अब भी तैयार नहीं हैं, तो सवाल उठता है कि परिणाम किस आधार पर घोषित किए गए थे।
इंडेक्स कॉर्ड: चुनावी प्रक्रिया का आधार
इंडेक्स कॉर्ड चुनाव प्रक्रिया का एक समरी दस्तावेज़ है, जिसमें निर्वाचक नामावली के प्रकाशन से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक की जानकारी दर्ज होती है। इसे रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा तैयार किया जाता है और केंद्रीय चुनाव आयोग को प्रेषित किया जाता है।
यह लोकसभा चुनाव संचालन प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है। सवाल यह है कि:
क्या इंडेक्स कॉर्ड मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के पास नहीं पहुँचा है, जिसके कारण उनके पास डेटा नहीं है?
लोकसभा चुनाव और आरटीआई खुलासे
आरटीआई एक्टिविस्ट नितिन राजीव सिन्हा, जो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के RTI विभाग के अध्यक्ष भी हैं ने चुनाव आयोग से मतदान के प्रारंभिक और अंतिम आंकड़ों की जानकारी मांगी। लेकिन आयोग ने जवाब दिया कि उनके पास अभी यह डेटा उपलब्ध नहीं है। सवाल उठता है कि अगर अंतिम आंकड़े तैयार नहीं हुए हैं, तो जो परिणाम घोषित किए गए, उनका आधार क्या था?
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान 91 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से लगभग 67 प्रतिशत ने मतदान किया था। हालांकि, आयोग के पास अब तक राज्यवार या निर्वाचन क्षेत्रवार अंतिम आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
यह स्थिति सिर्फ एक तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि लोकतंत्र की प्रक्रिया में एक बड़ी खामी की ओर इशारा करती है।
सुलगते सवाल : क्या चुनाव आयोग के पास जवाब हैं?
- आंकड़ों की कमी: अगर मतदान के अंतिम आंकड़े अब भी जांच प्रक्रिया में हैं, तो परिणाम किस आधार पर घोषित किए गए?
- सत्यापन का आधार: सत्यापन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो अपलोड किए गए आरंभिक आंकड़ों की सटीकता पर विश्वास कैसे किया जाए?
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर प्रभाव: यदि सत्यापन के बाद आंकड़े बदल जाते हैं, तो क्या चुनाव परिणाम संशोधित होंगे?
- एक देश, एक चुनाव: जब आयोग समय पर मतदान के आंकड़े जारी नहीं कर पा रहा है, तो क्या वह लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव कराने में सक्षम है?
- संवैधानिक सवाल: क्या चुनाव परिणाम घोषित करने के बाद भी आंकड़ों में बदलाव संभव है? यह प्रक्रिया संविधान के उल्लंघन का संकेत नहीं देती?
सवाल यह भी कि –
- यदि डेटा उपलब्ध नहीं है, तो सत्यापन कैसे किया गया?
- राउंड-वाइज और समेकित डेटा को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) चुनाव आयोग को भेजते हैं। यह प्रक्रिया पूरी हुई या नहीं?
- CEO द्वारा भेजे गए आंकड़े केंद्रीय निर्वाचन आयोग तक नहीं पहुंचे, तो क्या बिना सत्यापन चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए?
- रिटर्निंग ऑफिसर की रिपोर्ट के बिना परिणाम कैसे घोषित किए गए?
- क्या आयोग द्वारा घोषित परिणामों की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है?
फ़ॉर्म 17C की भूमिका
फॉर्म 17C मतदान के दिन का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो मतदान की पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
- इसमें कंट्रोल यूनिट और बैलट यूनिट (जिसमें मतदान होता है) के नंबर दर्ज होते हैं।
- कितने वोट पड़े, इसका विवरण इसमें होता है।
- पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर और सील के साथ यह फ़ॉर्म तैयार किया जाता है।
- मतगणना के समय फॉर्म 17C का मिलान किया जाता है और तभी काउंटिंग शुरू होती है।
लेकिन सवाल यह उठता है:
क्या बिना फ़ॉर्म 17C का सत्यापन किए चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए?
एक देश, एक चुनाव: कैसे जुड़े हैं ये सवाल?
“एक देश, एक चुनाव” (One Nation One Election) की अवधारणा के अनुसार, लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इससे न केवल प्रशासनिक और वित्तीय लागत घटेगी, बल्कि समय की भी बचत होगी। लेकिन इसके लिए चुनाव आयोग का मजबूत और दक्ष होना जरूरी है।
जब आयोग छह महीने बाद भी लोकसभा चुनाव के मतदान के आंकड़े जारी नहीं कर पाया है, तो यह संदेह पैदा होता है कि क्या वह इतने बड़े पैमाने पर चुनाव प्रबंधन करने में सक्षम होगा।
साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि आयोग अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए, ताकि जनता का विश्वास बना रहे।
चुनाव आयोग की सफाई और आलोचना
आयोग ने अपने जवाब में कहा कि डेटा देशभर से मंगाया जाता है, जिसे संकलित करने और सत्यापित करने में समय लगता है। हालांकि, इस देरी ने राजनीतिक दलों को आयोग की आलोचना का मौका दे दिया है। कांग्रेस ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन बताते हुए सवाल उठाए हैं, जबकि बीजेपी ने इसे “संस्थाओं पर अविश्वास जताने का प्रयास” करार दिया है।
गैर-सरकारी संगठन एडीआर (ADR) के सह-संस्थापक प्रो. जगदीप छोकर के अनुसार, “अगर सत्यापन के बाद पता चले कि चुनाव परिणाम गलत हैं, तो यह संविधान का उल्लंघन होगा।” उनकी इस टिप्पणी ने आयोग की कार्यशैली पर गहरा सवाल खड़ा किया है।
लोकतंत्र पर असर
चुनावों के आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं होते; वे लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। इन आंकड़ों की सटीकता और पारदर्शिता ही यह सुनिश्चित करती है कि जनता का मत सही तरीके से प्रतिबिंबित हुआ है। अगर इस प्रक्रिया में कोई खामी आती है, तो इसका सीधा असर लोकतंत्र पर पड़ता है।
चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि मतदान के अंतिम आंकड़े समय पर जारी किए जाएं। आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीकी खामियां, डेटा प्रबंधन की देरी, या सत्यापन प्रक्रिया में ढिलाई लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा न बने।
ByNews View
“एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा को लागू करने के लिए चुनाव आयोग को अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और दक्षता लाने की आवश्यकता है। मतदान प्रक्रिया और परिणामों में देरी न केवल लोकतंत्र की साख को प्रभावित करती है, बल्कि भविष्य में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास को भी कमजोर कर सकती है। चुनाव आयोग को अपनी प्रक्रियाओं को अधिक संगठित, पारदर्शी और समयबद्ध बनाना होगा, ताकि जनता का विश्वास कायम रहे।
लोकतंत्र की सफलता का आधार जनता का विश्वास है। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी प्रक्रियाएं इस विश्वास को मजबूत करें, न कि इसे कमजोर करें।
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