Delhi Elections: दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) को एक बड़ा झटका लगा है। पार्टी के 7 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है, जिससे चुनावी माहौल में नया मोड़ आ गया है। इस्तीफा देने वाले विधायकों में त्रिलोकपुरी से रोहित महरौलिया, जनकपुरी से राजेश ऋषि, कस्तूरबा नगर से मदनलाल, पालम से भावना गौड़, बिजवासन से बीएस जून, आदर्श नगर से पवन शर्मा और महरौली से नरेश यादव शामिल हैं।
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टिकट कटने से नाराज विधायकों ने छोड़ी पार्टी
इन 7 विधायकों के टिकट आम आदमी पार्टी द्वारा काटे जाने के बाद यह इस्तीफे सामने आए हैं। चुनाव से पहले ही इस्तीफों का सिलसिला शुरू हो गया है, जिससे पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठने लगे हैं। अब तक पार्टी को संगठित दिखाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन इन इस्तीफों के बाद AAP अंदरूनी कलह से जूझती नजर आ रही है।
रोहित महरौलिया का बड़ा आरोप
त्रिलोकपुरी से विधायक रोहित महरौलिया ने अरविंद केजरीवाल को संबोधित पत्र में कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा, मैं अन्ना आंदोलन के दौरान अपनी 15 साल पुरानी नौकरी छोड़कर इस सोच के साथ पार्टी से जुड़ा था कि यह पार्टी सामाजिक न्याय और समानता के लिए काम करेगी। आपने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा था कि सत्ता में आने पर दलित समाज के उत्थान के लिए काम करेंगे। परंतु, न ठेकेदारी प्रथा बंद हुई और न ही कच्ची नौकरी पर काम करने वालों को स्थायी किया गया। आपने हमारे समाज को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया।
अन्य विधायकों के इस्तीफे और उनके आरोप
नरेश यादव (महरौली) – उन्होंने आम आदमी पार्टी को “भ्रष्टाचार में लिप्त” बताते हुए इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा, “AAP का जन्म भ्रष्टाचार के खिलाफ हुआ था, लेकिन आज यह खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंस चुकी है।”
भावना गौड़ (पालम) – उन्होंने कहा, “मुझे अब अरविंद केजरीवाल और पार्टी में भरोसा नहीं रहा। इसलिए मैं इस्तीफा दे रही हूं।”
पवन शर्मा (आदर्श नगर) – उन्होंने आम आदमी पार्टी को “भटका हुआ” बताते हुए इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा, “पार्टी अपनी मूल विचारधारा से भटक चुकी है, जिसे देखकर मैं बहुत दुखी हूं।”
रोहित महरौलिया (त्रिलोकपुरी) – उन्होंने एक्स (Twitter) पर लिखा, “जिन्हें बाबा साहेब की सिर्फ फोटो चाहिए, उनके विचार नहीं! ऐसे मौका-परस्त लोगों से मेरा नाता खत्म।”
चुनाव से पहले बढ़ी मुश्किलें
आम आदमी पार्टी के लिए यह इस्तीफे चुनाव से पहले मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं। पार्टी को अब न केवल संगठन को बचाने की चुनौती है, बल्कि मतदाताओं के बीच अपनी साख भी बनाए रखनी होगी। विपक्षी पार्टियां इसे AAP की नाकामी बता रही हैं और इसे पार्टी के अंत की शुरुआत कह रही हैं।
क्या AAP इससे उबर पाएगी?
चुनाव से ठीक पहले इन इस्तीफों ने दिल्ली की राजनीति को गर्मा दिया है। देखना होगा कि आम आदमी पार्टी इस संकट से कैसे उबरती है और क्या अरविंद केजरीवाल कोई बड़ा कदम उठाकर स्थिति को संभाल पाते हैं।
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