Bank FD Rates : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार 7वीं बार नीतिगत ब्याज दरों (रेपो रेट) में कोई बदलाव नहीं किया है। दूसरे शब्दों में बैंक की ओर से फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती की आशंका नहीं है। इस फाइनेंशियल ईयर में रेट कट की संभावनाएं बन रही हैं, क्योंकि खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक के दायरे में बनी हुई है। इस वजह से ऊंची दरों को फायदा उठाने के लिए अभी एफडी करा सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एफडी की ऊंची दरें अगरे 4-6 माह जारी रह सकती है। कई बैंक अपने ग्राहकों को एफडी पर 8 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक सालाना ब्याज दे रहे हैं।
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जानिए क्या करें निवेश
जानकारों के अनुसार, कुछ बैंक अभी भी एफडी की दरें बढ़ा सकते हैं। बड़ी बढ़ोतरी होने की उम्मीद नहीं है। हालांकि रेपो रेट में कटौती होती तो एफडी की दरें घट जाती। जो निवेशक अधिक रिटर्न के लिए ज्यादा जोखिम ले सकते हैं। ऐसे में उन्हें स्मॉल फाइनेंस बैंकों में एफडी कराना चाहिए, ये बैंक आम लोगों को 9 प्रतिशत तो वरिष्ठ नागरिकों को 9.5 प्रतिशत तक ब्याज दे रहे हैं। किसी एक स्मॉल फाइनेंस बैंक में 5 लाख रुपए से अधिक निवेश नहीं करें।
ये बैंक एफडी पर दे रहे अधिक ब्याज
बैंक : आम लोग – वरिष्ठ नागरिक
सूर्योदय एसएफबी : 9.01 प्रतिशत – 9.2 प्रतिशत
नॉर्थईस्ट एसएफबी : 8.5 प्रतिशत – 9.25 प्रतिशत
शिवालिक एसएफबी : 8.7 प्रतिशत – 9.2 प्रतिशत
उज्जीवन एसएफबी : 8.5 प्रतिशत – 9 प्रतिशत
आरबीएल : 8.1 प्रतिशत – 8.6 प्रतिशत
डीसीबी बैंक : 8 प्रतिशत – 8.6 प्रतिशत
आइडीएफसी : 8 प्रतिशत – 8.5 प्रतिशत
बंधन बैंक : 8 प्रतिशत – 8 प्रतिशत
यस बैंक : 7.7 प्रतिशत – 8.25 प्रतिशत
(अधितकम सालाना ब्याज दरें)
इन पर निर्भर करेगी एफडी की दरें
महंगाई :- देश में खुदरा महंगाई और कोर महंगाई दर घटी है। लेकिन खाद्य महंगाई 8 फीसदी ज्यादा पर बरकरार है। जब तक खाद्य महंगाई नहीं घटेगी, आरबीआई ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। इस प्रकार से एफडी की दरें उपर ही रहेंगी।
बैंकों में नकदी :- लोन की मांग लगातार बढ़ रही है, इससे बैंकों में नकदी का संकट है। ऐसे में निवेशों आकर्षित करने के लिए कई बैंकों ने फरवरी-मार्च में ब्याज दरें बढ़ाई है। नकदी संकट बरकरार रहने से एफडी की दरें और बढ़ने की संभावना है।
क्रूड ऑयल:- राजनीति संकट के कारण क्रूड ऑयल की कीमतें फिर 90 डॉलर प्रति बैरल को पार चल रही है। इसका असर सभी चीजों की महंगाई पर पड़ रहा है। यदि कीमतें बढ़ती रहीं तो आरबीआई के लिए रेपो रेट घटाना आसान नहीं है।