Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश के बालाघाट वन क्षेत्र में बाघों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में कटंगी रेंज के मुंडीवाड़ा सर्कल के कोदमी बीट में झाड़ियों के बीच एक और बाघ का शव बरामद किया गया। यह राज्य में महज एक महीने में बाघ की चौथी मौत है, जिससे वन्यजीव संरक्षण को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।बाघ भारत की राष्ट्रीय धरोहर हैं, और उनकी सुरक्षा हमारा नैतिक कर्तव्य भी है। लगातार हो रही इन मौतों को रोकने के लिए वन विभाग और सरकार को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे, वरना ‘टाइगर स्टेट’ की यह पहचान खतरे में पड़ सकती है।
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बाघों की सुरक्षा पर संकट
मध्य प्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, लेकिन लगातार हो रही बाघों की मौतें वन विभाग और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही हैं। अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एल कृष्णमूर्ति ने बाघ के शव मिलने की पुष्टि की और बताया कि मामले की जांच की जा रही है। हालांकि, शुरुआती जांच में अवैध शिकार की आशंका को खारिज किया गया है।
बाघ की मौत का कारण बना शिकारी जाल?
वन्यजीव अधिकारियों और पशु चिकित्सकों की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, बाघ की मौत भूख और निर्जलीकरण के कारण हुई हो सकती है। अधिकारियों ने बताया कि यह एक नर बाघ था और उसके गले में तार का फंदा फंसा हुआ था, जिससे प्रतीत होता है कि वह लंबे समय तक संघर्ष करता रहा।

सूत्रों के अनुसार, बाघ एक शिकारी जाल में फंस गया था, जो आमतौर पर जंगली सूअरों और अन्य जानवरों को पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। बाघ शायद खुद को छुड़ाने के लिए संघर्ष कर रहा था और अंततः भूख और थकान से उसकी मौत हो गई। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वह लगभग 15 दिनों तक इस जाल में फंसा रहा।
क्या वन विभाग की लापरवाही बनी मौत की वजह?
कुछ अपुष्ट रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि बाघ की मौत से एक दिन पहले बीट स्टाफ ने उसे इसी क्षेत्र में देखा था, लेकिन उसकी गंभीर स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया। शनिवार सुबह जब वन विभाग के कर्मचारी बाघ की तलाश में निकले, तो उन्होंने झाड़ियों में उसका शव पाया।
जैसे ही अधिकारियों को सूचना मिली, रेंज अधिकारी और वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे। पशु चिकित्सकों की टीम ने मौके पर पहुंचकर बाघ का पोस्टमार्टम किया। वन अधिकारियों का मानना है कि शिकारी जाल जंगली सूअरों को पकड़ने के लिए लगाया गया था, लेकिन दुर्भाग्य से इसमें बाघ फंस गया। हालांकि, अवैध शिकार की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।
एक महीने में चौथी बाघ की मौत
यह पहली बार नहीं है जब बालाघाट वन क्षेत्र में बाघ की मौत हुई हो। हाल ही में उमरिया जिले के वन प्रभाग के पाली रेंज के करकटी क्षेत्र में दो सप्ताह पहले भी एक बाघ का शव बरामद किया गया था। उस मामले में भी वन अधिकारियों ने शिकार की संभावना को खारिज किया था। इसके अलावा, इसी महीने दो और बाघों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।
बालाघाट और उसके आसपास के क्षेत्रों में लगातार हो रही बाघों की मौतों ने वन विभाग की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्य सरकार और वन विभाग को बाघों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।
वन्यजीव संरक्षण के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
गश्त और निगरानी बढ़ाई जाए – वन विभाग को जंगलों में गश्त बढ़ाने और संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की आवश्यकता है।
जंगली जानवरों के लिए जल स्रोत उपलब्ध कराए जाएं – गर्मी के मौसम में जल स्रोतों की कमी के कारण जानवर भोजन और पानी की तलाश में शिकारियों के जाल में फंस सकते हैं।
अवैध शिकार पर कड़ी कार्रवाई हो – शिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने और जंगलों में लगाए गए अवैध जालों को हटाने के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत है।
स्थानीय समुदायों को जागरूक किया जाए – ग्रामीणों और स्थानीय समुदायों को वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूक करना आवश्यक है।
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