Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश सरकार ने माओवादियों की घुसपैठ और उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक फैसला लिया है। राज्य के तीन नक्सल प्रभावित जिलों बालाघाट, मंडला और डिंडोरी में सरकार 850 स्थानीय आदिवासी युवाओं को भर्ती करेगी। ये युवक मुखबिर के रूप में कार्य करेंगे और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को माओवादी गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
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Madhya Pradesh: 850 स्थानीय युवाओं आदिवासियों की भर्ती
राज्य के शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मंगलवार को मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के बाद पत्रकारों को जानकारी देते हुए कहा कि यह निर्णय राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में माओवादी खतरे को देखते हुए लिया गया है। उन्होंने बताया, यह भर्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2026 तक नक्सलमुक्त भारत के विज़न को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
Madhya Pradesh: हर महीने मिलेंगे 25,000 रुपये
मंत्री कैलाश ने बताया कि इन आदिवासी युवकों को एक साल की अवधि के लिए 25,000 रुपये मासिक वेतन पर नियुक्त किया जाएगा। सरकार का मानना है कि स्थानीय युवक क्षेत्र की भौगोलिक, सामाजिक और भाषाई समझ रखते हैं, जिससे वे संदिग्ध गतिविधियों पर प्रभावी नजर रख सकते हैं।
Madhya Pradesh: नक्सली खतरे की आशंका के बीच तैयारी तेज
मंत्री विजयवर्गीय ने कहा कि छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे पड़ोसी राज्यों में माओवादी गतिविधियों में हाल के वर्षों में कमी आई है, लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है कि नक्सली मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिलों की ओर रुख कर सकते हैं। उन्होंने कहा, कुछ विश्वसनीय इनपुट मिले हैं कि कुछ माओवादी पहले ही मध्य प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। इसलिए हम एक निर्णायक रणनीति के तहत काम कर रहे हैं।
माओवादियों ने जताई आत्मसमर्पण करने की इच्छा
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के दौरे के दौरान उन्हें यह भी जानकारी मिली कि बड़ी संख्या में माओवादियों ने आत्मसमर्पण करने की इच्छा जताई है। विजयवर्गीय ने कहा, वे अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते हैं। अब वक्त है कि हम उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के साथ-साथ सुरक्षा तंत्र को और मजबूत करें।
सुरक्षा और विकास, दोनों पर जोर
राज्य सरकार केवल खुफिया तंत्र को मजबूत नहीं कर रही, बल्कि प्रभावित क्षेत्रों में आधारभूत संरचना को भी बेहतर बनाने के प्रयास तेज कर रही है। विजयवर्गीय ने बताया कि बालाघाट, मंडला और डिंडोरी जिलों में सड़क निर्माण, दूरसंचार सेवाओं का विस्तार और सुरक्षा बलों की तैनाती से नक्सल गतिविधियों पर काफी हद तक नियंत्रण पाया गया है।
उन्होंने कहा, सड़कों और मोबाइल नेटवर्क जैसी सुविधाएं जहां लोगों के जीवन को आसान बना रही हैं, वहीं यह माओवादियों के लिए चुनौती बनती जा रही हैं क्योंकि इससे सुरक्षा बलों की पहुंच आसान हो गई है।
केंद्र सरकार की रणनीति से तालमेल
यह कदम केंद्र सरकार की उस व्यापक रणनीति के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य 2026 तक भारत को पूरी तरह नक्सलमुक्त बनाना है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी वर्ष फरवरी में छत्तीसगढ़ के दौरे पर कहा था कि 31 मार्च 2026 तक देश में नक्सलवाद का पूर्ण रूप से खात्मा कर दिया जाएगा।
स्थानीय भागीदारी से सुरक्षा को मजबूती
विशेषज्ञ मानते हैं कि सुरक्षा व्यवस्था में स्थानीय समुदाय की भागीदारी बेहद प्रभावी सिद्ध होती है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, स्थानीय युवकों को शामिल करने से हमें विश्वसनीय जानकारी मिलती है और उनका सहयोग ऑपरेशन की सफलता में निर्णायक होता है।
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