Digital Filth or Free Speech अश्लीलता बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
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हाल ही में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अश्लील और भद्दे कंटेंट को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यूट्यूबर्स रणवीर इलाहाबादिया, समय रैना और अपूर्वा मखीजा द्वारा एक शो में दिए गए आपत्तिजनक बयानों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़ा विरोध जताया जा रहा है। यह केवल एक शो या कुछ यूट्यूबर्स तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि यह एक बड़े सांस्कृतिक पतन और डिजिटल स्पेस में बढ़ती गंदगी का प्रतीक है।
सवाल यह है कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर समाज में विकृति फैलाना स्वीकार्य है?
डिजिटल स्पेस में बढ़ती अश्लीलता
इंटरनेट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने जहां अभिव्यक्ति की नई संभावनाएं खोली हैं, वहीं यह भी देखा जा रहा है कि कई लोग इसे एक ऐसा माध्यम बना चुके हैं, जहां वे बिना किसी सामाजिक जवाबदेही के कुछ भी परोस सकते हैं। कॉमेडी और एंटरटेनमेंट के नाम पर इस तरह के कंटेंट को पेश किया जाना एक नई चिंता को जन्म देता है।
पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल स्पेस में अश्लीलता और भद्दे कंटेंट की बाढ़ आई है। यह केवल मनोरंजन की सीमा तक नहीं रहता, बल्कि समाज में एक नकारात्मक प्रभाव डालता है। यह न केवल युवाओं को ग़लत दिशा में मोड़ता है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को भी नुकसान पहुंचाता है।
मनोरंजन या सामाजिक पतन?
मनोरंजन की परिभाषा क्या होनी चाहिए? क्या यह केवल हंसी-मजाक और व्यंग्य तक सीमित रहना चाहिए, या फिर इसमें एक नैतिक जिम्मेदारी भी होनी चाहिए? आधुनिक डिजिटल दौर में कुछ यूट्यूबर्स और कंटेंट क्रिएटर्स ने ऐसा माहौल बना दिया है, जहां वे खुलेआम गाली-गलौज, अश्लीलता और भद्दे संवादों को मनोरंजन के रूप में परोस रहे हैं। यह मनोरंजन नहीं बल्कि मानसिक प्रदूषण है।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार के कंटेंट की कोई मांग नहीं है। बल्कि सच यह है कि ऐसे कंटेंट को पसंद करने वाले लोग भी समाज में हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि प्लेटफॉर्म और बड़े आयोजक इस गंदगी को बढ़ावा दें। जब ऐसे कंटेंट क्रिएटर्स को बड़े प्लेटफॉर्म्स पर बुलाकर प्रमोट किया जाता है, तो यह अश्लीलता को वैधता देने जैसा होता है।
बड़े प्लेटफॉर्म्स और हस्तियों की जिम्मेदारी
इस विवाद का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म और प्रतिष्ठित हस्तियां किस तरह ऐसे कंटेंट को प्रमोट कर रही हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक प्रतिष्ठित शो में इन यूट्यूबर्स को बुलाया जाता है और उन्हें एक विशेष पहचान दी जाती है, तो यह समाज में गलत संदेश देता है। इससे उन युवाओं को प्रेरणा मिलती है जो सिर्फ व्यूज और प्रसिद्धि के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार रहते हैं।
अमिताभ बच्चन जैसे वरिष्ठ अभिनेता यदि किसी ऐसे व्यक्ति को अपने शो में बुलाते हैं, जो गाली-गलौज और अभद्रता के लिए कुख्यात है, तो उनकी भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे यह देखें कि वे किसे प्रमोट कर रहे हैं। डिजिटल कंटेंट की दुनिया में जिस तेजी से बदलाव आ रहा है, उसमें यदि कंटेंट की गुणवत्ता को नजरअंदाज किया गया, तो यह समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
समाज और सरकार की भूमिका
इस मामले में सरकार और समाज, दोनों को अपनी भूमिका निभानी होगी। सरकार को ऐसे कंटेंट पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए और अश्लीलता फैलाने वाले डिजिटल क्रिएटर्स के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा, अभिभावकों को भी अपने बच्चों की डिजिटल गतिविधियों पर ध्यान देना होगा।
मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भी यह समझना होगा कि व्यूज और लाइक्स के लालच में वे किस तरह के कंटेंट को बढ़ावा दे रहे हैं। यदि यह केवल व्यवसाय बनकर रह गया, तो समाज का नैतिक पतन निश्चित है।
विकृति फैलाने की स्वीकृति कतई नहीं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि इसका दुरुपयोग कर समाज में विकृति फैलाई जाए। यह जरूरी है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और बड़े मीडिया संस्थान अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें और ऐसे कंटेंट को प्रमोट करने से बचें। समाज में स्वस्थ मनोरंजन को बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है, न कि अश्लीलता और अभद्रता को सामान्य बनाना।
सरकार को भी सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि ऐसे डिजिटल वायरस को बढ़ने से रोका जा सके। यह समय है कि हम अपनी डिजिटल प्राथमिकताओं को पुनः निर्धारित करें और एक स्वस्थ और संस्कारी समाज की दिशा में आगे बढ़ें।
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