Naxal Surrender: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को एक ऐतिहासिक सफलता हाथ लगी है। गरियाबंद-धमतरी-नुआपाड़ा संभाग में सक्रिय प्रमुख माओवादी इकाई उदंती एरिया कमेटी के सभी सक्रिय सदस्यों ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इस समूह में सात नक्सली शामिल थे, जिनमें दो शीर्ष कमांडर-एरिया कमांडर सुनील और सचिव अरीना-भी थे। इन दोनों पर 8-8 लाख रुपये का इनाम घोषित था। पुलिस अधिकारियों ने इसे नक्सली संगठन की कमर तोड़ने वाला कदम बताया है, जिससे उदंती एरिया कमेटी का संचालन पूरी तरह समाप्त हो गया है।
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Naxal Surrender: रायपुर में माओवादियों का बड़ा समर्पण
रायपुर के पुलिस मुख्यालय में रेंज महानिरीक्षक (आईजी) अमरेश मिश्रा के समक्ष यह आत्मसमर्पण हुआ। समूह में चार महिलाएं—अरीना, विद्या, नंदिनी और कांति—और तीन पुरुष—सुनील, लुद्रन और मलेश—शामिल थे। प्रत्येक पर कुल मिलाकर 37 लाख रुपये का इनाम था। लुद्रन, विद्या, नंदिनी और मलेश पर 5-5 लाख रुपये का इनाम था, जबकि कांति पर 1 लाख रुपये। ये सभी 2010 से हिंसक गतिविधियों में लिप्त थे, जिनमें आईईडी विस्फोट, सुरक्षाबलों पर हमले और ग्रामीणों को धमकाने जैसे कृत्य शामिल हैं।
Naxal Surrender: इंसास राइफलें और सिंगल-शॉट बंदूक जमा किए
आत्मसमर्पण के दौरान समूह ने एक एसएलआर, तीन इंसास राइफलें, और एक सिंगल-शॉट बंदूक सहित कुल छह हथियार जमा किए। आईजी मिश्रा ने समारोह में कहा, “यह आत्मसमर्पण क्षेत्र में शांति बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उदंती एरिया कमेटी की संचालन क्षमता अब पूरी तरह समाप्त हो चुकी है।” उन्होंने बताया कि यह घटना गरियाबंद जिले के लिए ‘इतिहासिक क्षण’ है, जहां अब कोई सक्रिय माओवादी इकाई बाकी नहीं बची।
Naxal Surrender: कमांडर सुनील की अपील ने बदला खेल
निर्णायक मोड़ तब आया जब एरिया कमांडर सुनील ने अपने साथियों को शांति का संदेश दिया। सुनील, जो मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं, ने 2015 में माओवादी नेता मंदीप से मुलाकात के बाद संगठन में शामिल हो गए थे। ओडिशा के नुआपाड़ा जिले में सेंट्रल कमेटी सदस्य संगम उर्फ मुरली से मिलने के बाद वे उदंती एरिया में सक्रिय हो गए। सुनील ने सार्वजनिक रूप से कहा, “माओवाद की हिंसक राह ने हमें केवल विनाश दिया। अब हम शांति चुनते हैं और अन्य साथियों से भी हथियार डालने की अपील करते हैं।” उनकी इस अपील की समूह में गूंज हुई, जिससे सामूहिक आत्मसमर्पण का फैसला लिया गया।
Naxal Surrender: एक दशक से थे सक्रिय
पुलिस के अनुसार, ये नक्सली पिछले एक दशक से गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद और ओडिशा के नुआपाड़ा-नबरंगपुर जिलों की जंगली सीमाओं पर सक्रिय थे। उन्होंने कई हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया, जिनमें सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमले और विकास परियोजनाओं में बाधा प्रमुख हैं। इनकी गतिविधियों से क्षेत्र में भय का माहौल बना हुआ था, जिसने ग्रामीण विकास को पटरी से उतार दिया था।
Naxal Surrender: सुरक्षा बलों की रणनीति और पुनर्वास प्रयासों का असर
यह सफलता छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की संयुक्त रणनीति का नतीजा है। ‘समर्पण नीति’ के तहत चलाए जा रहे अभियान, सामुदायिक संपर्क कार्यक्रम और पुनर्वास योजनाओं ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया। आईजी मिश्रा ने कहा, हमारी ‘नक्सलियों के साथ संवाद’ पहल ने विश्वास का पुल बनाया। इन आत्मसमर्पणों से साबित होता है कि हिंसा की राह अब अप्रासंगिक हो चुकी है। राज्य सरकार की ‘नियत नक्सलमुक्त छत्तीसगढ़’ योजना के तहत आत्मसमर्पित नक्सलियों को नौकरी, आवास और वित्तीय सहायता का पैकेज मिलेगा।
नक्सलवाद के खिलाफ लंबी लड़ाई में मील का पत्थर
यह घटना छत्तीसगढ़ में माओवाद के खिलाफ लंबे संघर्ष में एक मील का पत्थर साबित हो रही है। राज्य में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 15 रह गई है, जबकि 2014 में यह 16 थी। केंद्र सरकार की ‘आदिवासी विकास योजना’ और ड्रोन निगरानी जैसे तकनीकी उपायों ने अभियान को मजबूती दी है। फिर भी, चुनौतियां बाकी हैं—जैसे बचे-खुचे छोटे दस्तों का सफाया और युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ना।
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