Maoist Surrender: खैरागढ़-छुईखदान-गंडई। छत्तीसगढ़ में माओवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को बड़ी सफलता मिली है। प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के 13 लाख रुपये के इनामी माओवादी जोड़े ने बुधवार को जिला पुलिस बल के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। 25 साल के इस कपल ने छत्तीसगढ़ सरकार की ‘सशक्त आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति-2025’ को अपना मुक्ति मार्ग बताया।
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Maoist Surrender: बस्तर और MMC जोन में थे सक्रिय
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, आत्मसमर्पण करने वाले पुरुष माओवादी को साथी ‘मुन्ना’ कहते थे। उस पर 7 लाख रुपये का इनाम घोषित था। उसकी साथी ‘जूली’ पर 6 लाख रुपये का इनाम था। दोनों पिछले कई वर्षों से बस्तर के माड़ संभाग और मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ (MMC) त्रि-राज्यीय सीमा क्षेत्र में सक्रिय थे। घने जंगलों में कैडर भर्ती, रसद सप्लाई और हिंसक वारदातों में इनकी भूमिका रही थी।
Maoist Surrender: ‘गेम-चेंजर कदम’ – पुलिस
जिला पुलिस अधीक्षक लक्ष्य शर्मा ने इसे माओवादी गढ़ों को ध्वस्त करने के अभियान में ‘गेम-चेंजर’ बताया। उन्होंने कहा, “हमारे जवानों के लगातार सर्जिकल ऑपरेशन और राज्य सरकार की आकर्षक पुनर्वास नीति ने इस जोड़े को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया। अब इन्हें कट्टरपंथ मुक्ति प्रशिक्षण, कौशल विकास और सम्मानजनक जीवन के लिए हरसंभव मदद दी जाएगी।”
Maoist Surrender: तत्काल वित्तीय सहायता से लेकर दीर्घकालिक पुनर्वास तक
आत्मसमर्पण करने वालों को नीति के तहत तुरंत वित्तीय सहायता, मासिक वजीफा, आवासीय भूखंड, व्यावसायिक प्रशिक्षण और सुरक्षा कवच दिया जाता है। एसपी शर्मा ने बताया कि दोनों को नियमों के अनुसार सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी, ताकि वे नए सिरे से जीवन शुरू कर सकें।
Maoist Surrender: 23 महीनों में 2200 से अधिक माओवादियों ने छोड़ा हथियार
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के आत्मसमर्पण का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ रहा है। पिछले 23 महीनों में 2,200 से ज्यादा माओवादी या तो सरेंडर कर चुके हैं या उन्होंने हिंसा का रास्ता त्याग दिया है। अधिकारी इसे बहुआयामी रणनीति की सफलता मानते हैं, जिसमें शामिल हैं:
- सुरक्षा बलों की सर्जिकल स्ट्राइक
- ग्रामीणों तक सीधी पहुंच और विश्वास निर्माण
- आकर्षक पुनर्वास पैकेज
- सफल सरेंडर करने वालों की कहानियों का प्रचार
आंतरिक मोहभंग ने तोड़ा मनोबल
पुलिस सूत्रों का कहना है कि माओवादी संगठन के अंदर विचारधारा से मोहभंग, लगातार दबाव और पूर्व साथियों के मुख्यधारा में सफल एकीकरण की कहानियों ने बचे हुए कैडरों का मनोबल तोड़ दिया है। जंगल में रहने की कठिनाइयों और लगातार भागते रहने की जिंदगी से तंग आकर कई कैडर अब हथियार डाल रहे हैं।
मुख्यमंत्री की नीति दिखा रही रंग
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार ने फरवरी 2025 में नई और सशक्त पुनर्वास नीति लागू की थी। इसके बाद से सरेंडर की रफ्तार में भारी इजाफा हुआ है। अधिकारियों का दावा है कि आने वाले महीनों में कई बड़े नाम भी मुख्यधारा में लौट सकते हैं।
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला, जो कभी माओवादियों का ट्रांजिट पॉइंट माना जाता था, अब सुरक्षित क्षेत्र की श्रेणी में आ रहा है। मुन्ना और जूली का आत्मसमर्पण इस बात का जीता-जागता सबूत है कि छत्तीसगढ़ में माओवाद अब अपने अंतिम चरण में है।
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