CG Politrics: इस कॉलम में ‘बिनोद’ आपको बताएंगे छत्तीसगढ़ में सत्ता और विपक्ष में चल रहे ‘अंदर के खेल’ के बारे में। वो बातें, जो ख़बरों का हिस्सा कम ही बनती हैं या बनती ही नहीं। क्योंकि, देख रहा है बिनोद…
किसकी जेबें हुईं गरम?
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव हैं। वैसे तो बीजेपी के लिए माहौल अच्छा है, डबल इंजन की सरकार जो है। संसाधनों और पैसों की दिक्कत तो होनी नहीं चाहिए, लेकिन पिछले दिनों संगठन के नेताओं और फायनेंस संभालने वाले पदाधिकारियों ने फंड को लेकर चिंता जाहिर की। उन्हें इस बात की फिक्र हो रही है कि चुनावी मैनेजमेंट के लिए पैसों को इंतजाम कैसे होगा? विधानसभा चुनाव के समय तो केन्द्र से पैसा मिल गया था, क्योंकि राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, पर अब तो राज्य में भी बीजेपी की सरकार है, लिहाजा केन्द्र भी हाथ खींच कर काम कर रहा है। छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार को तीन महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है। फंड की व्यवस्था करने के लिए इतना समय ठीक-ठाक होता है। ऐसे में संगठन के नेताओं की ‘फंड’ को लेकर चिंता समझ से परे है, क्योंकि ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर ठेकों में जो बड़े लेन-देन की खबरें आ रही हैं, उसके आधार पर तो लगता है कि भरपूर पैसा इकट्ठा हो गया होगा? संगठन के नेताओं की चिंता से सवाल उठना लाजिमी है कि अगर पैसा पार्टी फंड में नहीं गया, तो फिर किसकी-किसकी जेबें गरम हुई हैं? संघठन अभी भी चिंता में है।
डीजी की फाइल ऐसे पहुंची दिल्ली
छत्तीसगढ़ में पिछली सरकार के ‘हीरो’ अधिकारियों की अभी भी तूती बोल रही है। वो सरकार की जानकारी के बिना बड़े-बड़े फैसले ले रहे हैं। एक्सटेंशन में चल रहे राज्य के पुलिस मुखिया अपनी खूब गोटिंया बिठा रहे हैं। बताते हैं कि चुनावी आचार संहिता का फायदा उठाकर उन्होंने ऐसा दांव खेला, जो सरकार में बैठे लोगों को समझ तक नहीं आ रहा है। लेकिन जानकार बता रहे हैं कि बाद में यह गले में हड्डी ना बन जाये। अंदर की खबर है कि उन्होंने राज्य में डीजीपी का एक और पद सृजित करने की फाइल दिल्ली भेजी है। चर्चा तो यह भी है कि उन्होंने अपने भरोसेमंद बाबू को आनन-फानन में हवाई जहाज से दिल्ली भेजकर फाइल मंत्रालय पहुंचाई है। बताते हैं कि वे अपने एक विश्वासपात्र एडीजी प्रदीप गुप्ता को डीजी बनाकर सत्ता सौंपने के जुगाड़ में हैं। गौर करने लायक बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया से गृहमंत्री बेखबर हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इतनी महत्वपूर्ण फाइल के बारे में मंत्रीजी को जानकारी नहीं दी गई, तो उनके पीठ पीछे क्या-क्या हो रहा होगा?
गर्दिश में तारे!
सियासत में पद-प्रतिष्ठा का गहरा नाता होता है। पद के जाते ही प्रतिष्ठा के तार-तार होने में जरा भी देर नहीं लगती। सूबे के पूर्व मुखिया को ही ले लीजिए। तीन महीने पहले तक उनके सामने किसी के मुंह खोलने की हिम्मत नहीं होती थी और अब सार्वजनिक तौर पर बेइज्जती के घूंट पीने पड़ रहे हैं। पिछले दिनों राजनांदगांव में भरी सभा में सुरेन्द्र दाऊ ने बखिया उधेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बेचारे साहब चुपचाप सुनते रहे। दूसरे दिन एक दूसरे पदाधिकारी ने पीसीसी के पैसों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सनसनी फैला दी। इसके बाद तो मानो नेताजी को निपटाने की होड़ मच गई और टिकट काटने तक की मांग उठने लगी। समय का चक्र कैसे बदलता है, यह इसका सटीक उदाहरण है।
सैयां भये कोतवाल…
सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का…यह कहावत राजधानी से लगे रेंज के आईपीएस की पत्नी पर फिट बैठती है, क्योंकि वो बिना डर-भय के जवानों और अफसरों पर कहर बन कर टूट रही हैं। बात कुछ दिन पुरानी है जब पति की वर्दी का नशा ऐसा चढ़ा कि उन्होंने फरमान जारी किया कि मेस में अब किसी के लिए खाना नहीं बनेगा। अचानक मिले इस फरमान के बाद कई जवानों और अफसरों को भूखे रहना पड़ा। हद तो तब हो गई जब एक अधिकारी का पका हुआ खाना मैडम के फरमान के बाद फेंक दिया गया। बताते हैं कि मैडम की तीमारदारी के लिए 40 जवान अलग से तैनात किए गए हैं। इसके बाद भी उनकी सेवा में कमी रह जाती है! फिर ऐसी स्थिति में साहब का रौद्र रूप देखने मिलता है। एक अफसर को सिर्फ इसलिए खरी-खोटी सुननी पड़ी कि साहब को भोजन में नींबू नहीं परोसा गया। साहब और मेम साहब के कारनामों के ये तो कुछेक उदाहरण ही है, क्योंकि ये तो रोजाना की बात है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या साहब को वर्दी इसलिए ही मिली है? बेहतर होता कि अपराधियों पर उनका खौफ होता तो आम जनता सुरक्षित महसूस करती। लगता है कि साहब मातहतों पर गुस्सा उतारने में ही बहादुरी समझते हैं।
दुर्ग का दबदबा
छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में दुर्ग जिले का खूब दबदबा देखने को मिल रहा है। यहां के नेता प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से चुनाव लड़ रहे हैं। दुर्ग संसदीय सीट से पाटन के विधायक भूपेश बघेल राजनांदगांव से चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू भी दुर्ग से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें दुर्ग से बाहर महासमुंद सीट से उतारा गया है। बीजेपी की सरोज पांडे भी दुर्ग की राजनीति करती रही हैं, लेकिन उन्हें कोरबा से टिकट मिली है। कांग्रेस की बची पांच सीटों से दुर्ग के नेताओं का नाम चल रहा है। कुल मिलाकर दुर्ग के नेता ही ताल ठोंकते दिखाई दे रहे हैं।
हवा में उड़ते विधायक जी
बीते जमाने का हिंदी फिल्म का एक चर्चित रोमांटिक गाना “आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे, बोलो देखा है कभी तुमने मुझे उड़ते हुए” तो आपने सुना होगा। फिल्म के नायक ने अपनी नायिका को उड़ते हुए देखा है कि नहीं, ये तो नहीं पता, लेकिन बीजेपी के विधायकों के बारे में यह चर्चा सुनाई पड़ती है कि आजकल उनके पांव जमीं पर नहीं पड़ रहे हैं और वो हवा में उड़ते देखे जा रहे हैं। हवा में उड़ने वाले विधायकों में से एक दुर्ग जिले के हैं, उनके बारे में बताया जाता है कि इलाके में हर छोटे-बड़े ठेकों में दखल दे रहे हैं। मॉल के पार्किंग ठेके से लेकर चखना सेंटरों में भी विधायक जी की सेटिंग चल रही है। बताते हैं कि विधायक जी जहां भी जाते हैं पहले सेटिंग की प्लानिंग होती है। जेल का निरीक्षण करने गए तो अपराधियों से सेटिंग हो गई है। सट्टा और गेमिंग एप के मामले में जेल में बंद एक आरोपी के भाई को करीबी बना लिया। बताया जा रहा है कि कुछ बड़ी डील हुई है। चर्चा तो यह है कि 20 खोखा अंदर हो गया। अगर, चर्चाओं में थोड़ी बहुत भी सच्चाई है तो विधायक हवा में उड़ते हुए तो नहीं धड़ाम से गिरते हुए जरूर दिखाई पड़ेंगे क्योंकि यहाँ की साडी ख़बरें ‘दिल्ली दरबार’ तक पहुँच रही हैं। चर्चा है कि चुनाव बाद दिल्ली के निर्देश पर पार्टी बड़ा एक्शन ले सकती है।
फिर मिलेंगे… अगर आपके पास भी कोई इनपुट है तो देना प्लीज।
आपका ‘बिनोद’
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Disclaimer: उपर्युक्त कॉलम में उल्लेखित जानकारी राग-द्वेष से परे विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और पोलिटिकल पार्टीज के नेताओं-कार्यकर्ताओं के कथ्यों पर आधारित है। फिर भी, किसी को किसी बात पर कोई आपत्ति हो तो कृपया bynewsindia.com पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।