SIR Row: भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि बिहार में विशेष गहन संशोधन (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन – SIR) अभियान के दौरान मतदाताओं की पहचान स्थापित करने के लिए आधार कार्ड का उपयोग किया जाएगा। यह अभियान बिहार की मतदाता सूची को अपडेट करने का हिस्सा है, जो आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी दिन अपना आदेश जारी करते हुए स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को पहचान सत्यापन के लिए 12वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा, लेकिन अधिकारियों को इसकी प्रामाणिकता और वैधता की जांच करनी होगी। साथ ही, कोर्ट ने जोर दिया कि आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा। ईसीआई को दिन के दौरान संबंधित निर्देश जारी करने का आदेश दिया गया है।
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SIR Row: विपक्ष दलों ने जताई थी कड़ी आपत्ति
यह फैसला बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर छिड़े विवाद के बीच आया है। मूल रूप से, SIR अभियान में पहचान सत्यापन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की गई थी, जिसमें आधार कार्ड शामिल नहीं था। विपक्षी दलों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी, दावा करते हुए कि यह भाजपा और एनडीए को फायदा पहुंचाने के लिए मतदाता सूची से नाम हटाने की साजिश है। 18 अगस्त 2025 को ईसी ने ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की, जिसमें 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए थे। इससे राजनीतिक हलचल मच गई, और विपक्ष ने इसे चुनावी हेरफेर का आरोप लगाया। अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से आधार को शामिल करने का रास्ता साफ हो गया है, जो लाखों मतदाताओं को राहत दे सकता है।
SIR Row: SIR अभियान उद्देश्य
बिहार में SIR अभियान चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया एक विशेष प्रयास है, जिसका मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को सटीक और अद्यतन बनाना है। राज्य में लगभग 7.5 करोड़ मतदाता हैं, और आगामी विधानसभा चुनावों (अक्टूबर-नवंबर 2025 में संभावित) से पहले यह अभियान महत्वपूर्ण है। अभियान के तहत, बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे, जिसमें जन्म तिथि, पता और पहचान दस्तावेजों की जांच शामिल है। मूल दस्तावेजों में पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी, पैन कार्ड, राशन कार्ड आदि शामिल थे, लेकिन आधार को बाहर रखने से असुविधा हुई। ईसीआई ने कोर्ट में कहा, “आधार कार्ड को भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से शामिल/बहिष्कृत मतदाता के लिए विचार में लिया जाएगा।” यह कदम UIDAI (यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के साथ समन्वय में लिया गया है, जो आधार की गोपनीयता सुनिश्चित करता है।
SIR Row: SIR में आधार मान्य, लेकिन नागरिकता का सबूत नहीं
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने की, जिसमें ईसीआई के वकील और विपक्षी याचिकाकर्ताओं के तर्क सुने गए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार केवल पहचान के लिए वैध है, न कि नागरिकता प्रमाण के रूप में। लाइव लॉ के अनुसार, कोर्ट का आदेश था: हालांकि, अधिकारियों को आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वैधता की जांच का अधिकार होगा। यह नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा। ईसीआई दिन के दौरान निर्देश जारी करेगी।” यह निर्णय 2015 के आधार एक्ट के अनुरूप है, जो आधार को केवल सब्सिडी और लाभों के लिए अनिवार्य बनाता है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया में इसका दुरुपयोग रोकता है।
चुनाव आयोग और बीजेपी पर आरोप
विपक्षी दल, विशेष रूप से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और अन्य, ने SIR अभियान को “मतदाता दमन” का हथियार बताया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया कि 65 लाख नाम हटाना गरीब और अल्पसंख्यक वोटरों को निशाना बनाने की साजिश है। विपक्ष का दावा है कि आधार को बाहर रखकर ईसी ने जानबूझकर बाधा डाली, क्योंकि करोड़ों लोग आधार पर निर्भर हैं। भाजपा ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह पारदर्शिता के लिए आवश्यक है, ताकि नकली वोटरों को रोका जा सके। ईसीआई ने स्पष्ट किया कि नाम हटाना स्वाभाविक प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें मृत, स्थानांतरित या डुप्लिकेट वोटर शामिल हैं।
चुनाव पर पड़ सकता है विवाद का असर
इस विवाद का असर बिहार चुनावों पर पड़ सकता है, जहां 243 सीटों पर मुकाबला तीखा है। यदि आधार शामिल होता है, तो लाखों युवा और प्रवासी मतदाता आसानी से सत्यापन करा सकेंगे, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है। हालांकि, गोपनीयता चिंताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ईसीआई को सख्त निर्देश दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला चुनावी लोकतंत्र को मजबूत करेगा, लेकिन ईसी को अब पारदर्शी दिशानिर्देश जारी करने होंगे।
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