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Friday, September 20, 2024
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Santoshi mata ki katha: इस कथा को पढ़े बिना अधूरा माना जाता है शुक्रवार का व्रत

Santoshi mata ki katha: जो कोई शुक्रवार का व्रत करता है उसे पूजा के समय ये व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। वरना व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।

Santoshi mata ki katha: हिन्दू धर्म में शुक्रवार का व्रत बहुत फलदायी माना गया है।। इस दिन व्रत और पूजन से मां संतोषी की कृपा से धन-वैभव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही शुक्रवार व्रत की कथा पढ़ना भी जरूरी माना गया है। तभी पूजा का सम्पूर्ण फल मिलता है। आइए जानते हैं शुक्रवार व्रत कथा…

शुक्रवार व्रत की कथा –

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में एक बूढ़ी अम्मा रहती थी। उसके सात पुत्र थे। जिनमें से छः बेटे तो कमाने वाले थे और एक बेटा कोई काम नहीं करता था। बुढ़िया अपने सभी छः पुत्रों की झूठन सातवें पुत्र को देती थी। फिर एक दिन सातवां पुत्र अपनी पत्नी से बोला कि, देखो! मेरी मां का मेरे लिए कितना प्रेम है। इस बात पर उसकी पत्नी बोली, क्यों नहीं, आपकी मां सबका जूठा बचा हुआ खाना तुमको खिलाती है। सातवां पुत्र बोला, जब तक मैं अपनी आंखों से नहीं देख लेता मैं ये बात मान नहीं सकता। इस पर पत्नी ने हंसकर कहा, ठीक है, तुम अपनी आखों से देखकर ही मानोगे।

कुछ दिनों के बाद एक त्योहार पर घर में सात प्रकार के व्यंजन और चूरमा के लड्डू बने। तब सातवें पुत्र ने अपनी पत्नी की बात को जांचने के लिए सिरदर्द का नाटक किया और सिर पर एक पतला कपड़ा ओढ़कर वहीं रसोई में ही सो गया। इसके बाद उसके छहों भाई भोजन करने आए। वह चुपचाप कपड़े में से सब देखता रहा। उसने देखा कि मां ने भाइयों के लिए सुंदर-सुंदर आसन बिछाकर बैठाया। सातों व्यंजन परोसे। फिर प्रेम से सभी को खाना खिलाया।

इसके बाद सभी छः भाइयों के खाना खा लेने के बाद मां ने उनकी 6 थालियों में से बचे हुए लड्डुओं के टुकड़ों को उठाया और एक लड्डू बना लिया। इसके बाद जूठन साफ करके मां ने सातवें बेटे को खाने के लिए पुकारा। तब बेटे ने कहा, मां! मुझे भोजन नहीं करना, मैं तो परदेस जा रहा हूं। इस पर बुढ़िया अम्मा ने कहा, कल जाना हो तो आज ही चला जा। बेटा बोला, हां, जा रहा हूं। ये बोलकर सातवां बेटा घर से निकल गया।

घर से निकलते समय उसे पत्नी की याद आई। उसकी पत्नी गौशाला में कंडे थाप रही थी। वह वहां जाकर अपनी पत्नी से बोला, मेरे पास तो कुछ नहीं है। बस एक यह अंगूठी है, इसे ही ले लो और अपनी कोई निशानी मुझे दे दो। इस पर पत्नी बोली, मेरे पास भी क्या है। बस यह गोबर भरा हाथ है। इतना कहकर पत्नी ने उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी।

पत्नी से मिलने के बाद वह चल दिया। रास्ते में चलते-चलते कहीं दूर एक देश में पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। बुढ़िया का सातवां बेटा वहां जाकर बोला, “सेठ जी, कृपा मुझे नौकरी पर रख लो”। साहूकार को भी एक नौकर की बहुत जरूरत थी। तब साहूकार ने उससे कहा, “काम देखकर ही तनख्वाह मिलेगी”। उसने कहा, “ठीक है सेठजी जैसा आपको ठीक लगे”। नौकरी मिलने के बाद वह दिन-रात काम करने लगा। कुछ दिन में अपनी मेहनत से उसने लेन-देन और ग्राहकों को माल बेचना आदि काम संभाल लिया। पहले से ही साहूकार के जो सात-आठ नौकर थे। वे सब उसकी लगन देखकर चौंक गए। आखिरकार बुढ़िया अम्मा के निक्कमे बेटे को परिश्रम और ईमानदारी का फल मिला। साहूकार ने भी उसके काम से प्रभावित होकर तीन महीने में ही उसे मुनाफे में साझेदार बना लिया। बारह साल में ही बुढ़िया का बेटा उस नगर का नामी सेठ बन गया। इसके बाद साहूकार ने अपना सारा कारोबार उस पर छोड़ दिया और नगर से बाहर चला गया।

उधर बुढ़िया के बेटे की पत्नी अकेली थी। वहां सास-ससुर उसे परेशान करने लगे। पूरे घर का काम करवाकर फिर बहू को जंगल लकड़ी लेने भेज देते। घर आने पर बहू को आटे से जो भूसी निकलती, उसकी रोटी बनाकर दे दी जाती। पानी भी फूटे नारियल की नरेली में दिया जाता। इस तरह दुख में दिन बीतते रहे। फिर एक दिन जब बहू जंगल में लकड़ी लेने जा रही थी, तब उसे रास्ते में कुछ औरतें पूजा, व्रत करती दिखाई दीं। इस पर उसने वहां जाकर पूछा, “बहनों, ये आप किस देवता का व्रत कर रही हो और इसका क्या फल है”? मुझे भी कृपा करके इस व्रत की विधि बतलाओ।

बुढ़िया की बहू की बात सुनकर उनमें से एक स्त्री बोली, “सुनो, हम संतोषी माता का व्रत कर रहे हैं। इस व्रत को करने से गरीबी, कष्ट और दरिद्रता का नाश होता है। मां संतोषी की कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है। साथ ही कुंवारी कन्या को मनपसंद वर, नि:सन्तान महिला को पुत्र प्राप्ति का वरदान मिलता है। इसके अलावा को जो कोई शुक्रवार को मां संतोषी का व्रत-पूजन करता है उसके मन की सभी कामना पूरी हो जाती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है”।

इसके बाद बुढ़िया मां की बहू ने व्रत की विधि के बारे में पूछा। इस पर वह स्त्री फिर से कहने लगी, ” शुक्रवार के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना हो सके प्रसाद बना लें। सवा पांच पैसे या अपनी शक्ति के अनुसार रुपये लें। साथ में गुड़ और चना भी लें। यह व्रत हर शुक्रवार को निराहार रहकर किया जाता है। माता संतोषी की पूजा करके भोग लगाएं और कथा पढ़ें। आपके साथ में कथा सुनने वाला कोई न हो तो घी का दीपक जलाकर उसके समक्ष पानी से भरा पात्र रखें। मां संतोषी का आह्वान करते हुए मन में अपनी इच्छा पूर्ति की कामना करें। ध्यान रहे कि जब तक आपका कार्य सिद्ध न हो, व्रत के नियम का पालन करें। इसके बाद कार्यसिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना चाहिए। मान्यता है कि नियमित इस व्रत को करने से तीन महीने में माता संतोषी व्रत का पूरा फल प्रदान करती हैं। इस व्रत को करते से ग्रह भी अनुकूल हो जाते हैं।

व्रत के उद्यापन में अढाई सेर आटे का खाजा, खीर तथा चने का साग बनाना चाहिए। इस दिन आठ बच्चों को भोजन कराएं। जहां तक संभव हो अपने देवर, जेठ, भाई-बंधु यानि कुटुंब के बच्चे बुलाना। उन्हें भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा दें। शुक्रवार के व्रत में घर की रसोई में खटाई की कोई वस्तु नहींबननी चाहिए”। व्रत की विधि जानकार बुढ़िया की बहू वहां से चल दी। लौटते समय बहू ने लकड़ी की गठरी को बेचकर उन पैसों में गुड़, चना ले लिया। माता के व्रत की तैयारी कर वह रास्ते में संतोषी माता के मंदिर में जाकर माता के चरणों में लेट गई और मां संतोषी से विनती करने लगी, “हे मां! मैं दीन दुखियारी हूं, निपट मुर्ख हूं। व्रत के नियम आदि कुछ नहीं जानती। हे माता! कृपया मेरा दुख दूर करो। मुझे मेरे स्वामी से मिल दो”।

उस बुढ़िया की बहू ने नौ माह तक लगातार नियम से व्रत किया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हो गईं। माता की कृपा से बहू ने चांद जैसा पुत्र जन्मा। बच्चे को लेकर वह रोज संतोषी माता के मंदिर जाती। एक दिन संतोषी माता ने सोचा ये रोज मेरे मंदिर आती है। आज क्यों ना मैं ही इसके घर जाऊं। इसके बाद यह विचार कर संतोषी माता ने गुड़-चने से सना भयानक रूप बनाया। उनके मुंड के समान होंठ थे और उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं।

उस रूप में आई माता संतोषी को देखकर दहलीज पर पैर रखते ही बहू की सास चिल्लाई, “अरे देखो! ये कोई चुड़ैल चली आ रही है। अरे! लड़कों, इसे भगाओ”। ये सब बहू खिड़की से देख रही थी। वही मन ही मन प्रसन्न हो उठी, आज तो मेरी माता स्वयं मेरे घर आई हैं। इतना कहकर बहू ने दूध पीते बालक को गोद से उतार दिया। इस पर उसकी सास गुस्से में लाल होकर बोली, “अरी! इस चुड़ैल को देखकर कैसी पागल हो रही है, जो बच्चे को पटक दिया”। इतने में मां संतोषी के प्रताप से जहां देखो वहां लड़के ही लड़के नजर आने लगे। बहू बोली, “सासू मां! मैं जिनका व्रत करती हूं, यह वहीं संतोषी माता हैं”। इतना कहकर बहू ने घर के सारे किवाड़ खोल दिए। घर के सभी लोगों ने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे। “हे मां! हम मूर्ख इंसान हैं। आपकी महिमा, पूजा, व्रत की विधि कुछ नहीं जानते। हुमने अपनी बहू द्वारा किये जा रहे आपके व्रत को भंग करने का घोर अपराध किया है। हे माता! हमारे अपराधों को क्षमा करो। इस प्रकार बार-बार विनती करने पर संतोषी माता ने सबको माफ कर दिया। इसके बाद बुढ़िया कहने लगी। हे संतोषी माता। आपने मेरी बहू को जैसा फल दिया, वैसा सबको देना। साथ ही जो यह कथा सुने या पढ़े उसके सभी मनोरथ पूर्ण हों”।

जय संतोषी माता!!

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