Nitish Cabinet: बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली नई एनडीए सरकार के गठन के साथ ही कैबिनेट में परिवारवाद के आरोपों ने जोर पकड़ लिया है। गुरुवार को गांधी मैदान में शपथ ग्रहण के बाद 26 मंत्रियों वाली इस कैबिनेट को ‘परिवारवाद का अड्डा’ बताते हुए विपक्ष ने केंद्र व राज्य नेतृत्व पर तीखा प्रहार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे नेता जो राजनीति में ‘परिवारवाद’ की कटु आलोचना करते हैं, उनकी ही कैबिनेट में 26 में से 10 मंत्री ऐसे हैं जो अपने पिता, पति या ससुर की राजनीतिक विरासत पर सवार हैं। यह आंकड़ा न केवल विपक्ष के लिए हथियार है, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी सवाल खड़ा करता है कि क्या बिहार की सत्ता में ‘डिनास्टी पॉलिटिक्स’ अब अपरिहार्य हो गई है?
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Nitish Cabinet: नीतीश की 10वीं पारी, लेकिन कैबिनेट में पुराने चेहरे और परिवारवाद
नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन कैबिनेट का स्वरूप ज्यादातर पुराने चेहरों से सजा है। एनडीए के घटक दलों—बीजेपी (15 मंत्री), जेडीयू (9), हम (1) और रालोद (1)—में से कई नाम ऐसे हैं जो राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। विपक्षी आरजेडी और कांग्रेस ने इसे ‘हिपोक्रेसी’ का ठिकाना बताया है। आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, “मोदी जी ‘पारिवरिक राज’ की बात करते हैं, लेकिन उनकी सहयोगी कैबिनेट में 38% मंत्री परिवारवाद के शिकार हैं। यह लोकतंत्र का अपमान है।”
Nitish Cabinet: 10 मंत्रियों की ‘फैमिली लिगेसी’: कौन हैं ये ‘विरासत के वारिस’?
कैबिनेट में 10 मंत्रियों पर परिवारवाद का ठप्पा लगा है। इनमें ज्यादातर पिता या पति की मौत के बाद राजनीति में उतरे हैं। मुख्य उदाहरण:
- सम्राट चौधरी (उपमुख्यमंत्री): पिता शकुनी चौधरी (पूर्व विधायक-मंत्री) और माँ पार्वती देवी (पूर्व विधायक) की विरासत। चौधरी परिवार का बिहार की राजनीति में लंबा इतिहास।
- नितिन नवीन: पिता नवीन किशोर प्रसाद (4 बार पटना पश्चिम से बीजेपी विधायक) के बेटे।
- अशोक चौधरी: पिता महावीर चौधरी (पूर्व कांग्रेस मंत्री) के बेटे; बेटी शांभवी भी लोजपा (आर) सांसद।
- श्रेयसी सिंह: पिता दिग्विजय सिंह (चंद्रशेखर के करीबी केंद्रीय नेता) की बेटी। पिता के निधन के बाद परिवार ने राजनीति संभाली।
- संतोष कुमार सुमन (HAM): पूर्व सीएम व केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के पुत्र।
- दीपक प्रकाश (RLM): रालोद प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के बेटे। चुनाव नहीं लड़े, सीधे मंत्री बने।
- विजय कुमार चौधरी (JDU): पिता जगदीश प्रसाद (3 बार दलसिंहसराय से कांग्रेस विधायक) के बेटे। पिता के निधन के बाद जेडीयू में शामिल।
- लेशी सिंह: पति बूटन सिंह (समता पार्टी जिलाध्यक्ष, हत्या के बाद राजनीति में आईं) की पत्नी।
- रमा निषाद (बीजेपी): पति अजय निषाद (पूर्व मुजफ्फरपुर सांसद) और ससुर कैप्टन जय नारायण निषाद (4 बार सांसद) की बहू।
- सुनील कुमार (JDU): पिता चंद्रिका राम (पूर्व मंत्री) के बेटे।
ये नाम बीजेपी (4), जेडीयू (3), हम (1), रालोद (1) और अन्य (1) से हैं। शेष 16 मंत्रियों में जैसे विजय कुमार सिन्हा (उपमुख्यमंत्री), मंगल पांडेय, दिलीप जायसवाल आदि पर यह आरोप नहीं है।
Nitish Cabinet: विपक्ष का तंज: ‘परिवारवाद पर लेक्चर, लेकिन प्रैक्टिस अलग’
कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा, “नीतीश-मोदी परिवारवाद की निंदा करते हैं, लेकिन कैबिनेट में 10 ‘डिनास्टी’ सदस्य। यह लोकतंत्र को कमजोर करता है।” विश्लेषकों का मानना है कि बिहार की राजनीति में जाति और परिवारवाद का गठजोड़ मजबूत हो गया है। पूर्व आईएएस अधिकारी आर.के. सिंह ने कहा, “परिवारवाद से योग्यता दब जाती है। युवा टैलेंट को मौका नहीं मिलता।”
Nitish Cabinet: सरकार का बचाव: ‘योग्यता और अनुभव पर चयन’
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने सफाई दी, “कैबिनेट चयन योग्यता, अनुभव और पार्टी बैलेंस पर आधारित है। परिवारवाद का आरोप राजनीतिक साजिश है। नीतीश जी ने हमेशा मेरिट को प्राथमिकता दी।” बीजेपी ने इसे खारिज करते हुए कहा कि विपक्ष हार की खीझ निकाल रहा है।
राजनीतिक प्रभाव: क्या बदलेगा समीकरण?
यह कैबिनेट एनडीए की 202 सीटों (बीजेपी 89, जेडीयू 85, अन्य 28) पर बनी है। परिवारवाद के आरोप से विपक्ष 2027 चुनाव में हमला बोल सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में जातिगत समीकरणों के कारण यह सामान्य है। कुल मिलाकर, यह कैबिनेट ‘सुशासन 2.0’ का दावा करती है, लेकिन परिवारवाद का साया लंबे समय तक चर्चा में रहेगा।
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