Cuff Syrup Dispute: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में खांसी के साधारण इलाज के चक्कर में फंसकर अब तक 9 बच्चों की जान जा चुकी है, जबकि पड़ोसी राजस्थान के सीकर और भरतपुर में 2 अन्य मासूमों ने दम तोड़ा। कुल 11 मौतों के बाद केंद्र सरकार ने शुक्रवार को स्वास्थ्य एडवाइजरी जारी कर दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। जांच में घातक रसायन डायथिलीन ग्लाइकोल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकोल (EG) नहीं मिले, लेकिन किडनी फेलियर के केसों ने चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों की टीम जांच में जुटी है, जिसमें लेप्टोस्पायरोसिस जैसे संक्रमण की भी आशंका जताई जा रही है।
Table of Contents
Cuff Syrup Dispute: छिंदवाड़ा में मौतों का सिलसिला: 12 बच्चे अब भी जूझ रहे
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया क्षेत्र में वायरल बुखार और खांसी के मरीजों को दी गई कफ सिरप ने विपदा बुला ली। 24 अगस्त से शुरू हुए इस संकट में पहली मौत 7 सितंबर को हुई, जो अब 9 तक पहुंच चुकी है। शुक्रवार को अस्पताल में भर्ती एक 4 वर्षीय बच्चे ने दम तोड़ा, जबकि 12 अन्य बच्चे (सभी 5 वर्ष से कम उम्र के) नागपुर के AIIMS और छिंदवाड़ा के अस्पतालों में वेंटिलेटर पर जीवनरक्षा की जद्दोजहद कर रहे हैं। मृतकों के घरों से ‘कोल्ड्रिफ’ और ‘नेक्सट्रॉस-डीएस’ सिरप बरामद हुए, जो स्थानीय डॉक्टरों ने ही प्रिस्क्राइब किया था।
Cuff Syrup Dispute: सिरप की बिक्री और उपयोग पर रोक
तत्कालीन कलेक्टर ने ICMR और स्वास्थ्य विभाग की प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर इन सिरप की बिक्री और उपयोग पर रोक लगा दी। मेडिकल स्टोर्स से स्टॉक जब्त कर सील कराया गया। जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे सिरप लेने के 2-3 दिनों बाद उल्टी, दस्त और किडनी फेलियर के लक्षण दिखाने लगे। एक मां ने बताया, डॉक्टर ने साधारण खांसी के लिए सिरप लिखा, लेकिन बेटा 48 घंटों में कोमा में चला गया। राज्य के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने कहा कि 12 सैंपल भेजे गए, जिनमें से 3 की रिपोर्ट निगेटिव आई। फिर भी, राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (SFDA) ने अतिरिक्त जांच के आदेश दिए हैं।
Cuff Syrup Dispute: राजस्थान में भी हड़कंप: क्लीन चिट के बावजूद सवाल बरकरार
राजस्थान में राज्य सरकार की निःशुल्क दवा योजना के तहत वितरित डेक्सट्रोमेथॉर्फन आधारित कफ सिरप ने तीन जिलों में तबाही मचाई। सीकर में 5 वर्षीय बालक की मौत के बाद भरतपुर में 3 वर्षीय बच्चा गंभीर रूप से बीमार पड़ा, जहां एक अन्य 2 वर्षीय की भी जान गई। जयपुर की केयसंस फार्मा द्वारा सप्लाई किया गया यह सिरप बच्चों के लिए अनुशंसित नहीं है, फिर भी डॉक्टरों की सलाह के बिना वयस्क खुराक दी गई।
जांच के बाद सिरप को क्लीन चिट
शुक्रवार को राज्य सरकार ने जांच के बाद सिरप को क्लीन चिट दे दी, जिसमें DEG/EG या हानिकारक प्रोपाइलीन ग्लाइकोल नहीं पाया गया। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पल्ला झाड़ते हुए कहा, ये मौतें उन दवाओं से हुईं जो माताओं ने बिना सलाह दिए दीं। स्वास्थ्य विभाग का कोई दोष नहीं। हालांकि, राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन ने 19 बैचों की बिक्री रोकी और अभिभावकों को सतर्क किया। एक डॉक्टर को सिरप टेस्टिंग के दौरान बेहोशी आ गई, जो मामले की गंभीरता दर्शाता है।
केंद्र की जांच और विरोधाभास: संक्रमण या दवा का कमाल?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि NCDC, NIV, ICMR, CDSCO और AIIMS नागपुर की संयुक्त टीम ने छिंदवाड़ा-सीकर से सिरप, ब्लड, CSF, पानी और मच्छर नमूने एकत्र किए। मंत्रालय के अनुसार, सैंपल्स में DEG/EG नहीं मिला, जो किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख रसायन हैं। पुणे के NIV ने एक केस में लेप्टोस्पायरोसिस (चूहों से फैलने वाला संक्रमण) की पुष्टि की, जबकि NEERI और अन्य लैब्स में पैथोजन टेस्ट चल रहे हैं।
तमिलनाडु ने भी ‘कोल्ड्रिफ’ पर बैन
फिर भी, केंद्र-राज्य स्तर पर विरोधाभास उजागर हो रहा। केंद्र क्लीन चिट दे रहा, लेकिन छिंदवाड़ा के CMO डॉ. धीरज दवंडे का कहना है कि सैंपल रिपोर्ट अभी नहीं मिली। तमिलनाडु ने भी ‘कोल्ड्रिफ’ पर बैन लगा दिया, क्योंकि कंपनी के प्लांट से सैंपल संग्रहित किए गए। विशेषज्ञों का मानना है कि नकली या दूषित सिरप के अलावा जलवायु परिवर्तन से फैल रहे वायरल संक्रमण जिम्मेदार हो सकते हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी: बचाव ही एकमात्र हथियार
इस विपदा के बाद DGHS ने देशभर के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए:
- दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ/सर्दी की दवा न दें: खांसी-जुकाम स्वतः ठीक होते हैं; आराम, हाइड्रेशन और सहायक चिकित्सा पर्याप्त।
- 5 साल से कम उम्र में दवाओं से परहेज: केवल डॉक्टर की सलाह पर।
- बड़े बच्चों में सतर्कता: समुचित खुराक, कम अवधि, कॉम्बिनेशन दवाओं से बचें।
- गुणवत्ता सुनिश्चित: स्वास्थ्य संस्थाएं केवल प्रमाणित (GMP) दवाएं खरीदें। फार्मास्यूटिकल ग्रेड एक्सिपिएंट्स का उपयोग अनिवार्य।
यह भी पढ़ें:-