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Saturday, November 1, 2025
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कौन हैं सुशीला कार्की, जो बनीं नेपाल की पहली महिला पीएम, भारत से है खास नाता

Sushila Karki: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद हालात और भी तनावपूर्ण हो गए हैं। इस बीच प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुना है।

Sushila Karki: नेपाल इन दिनों जेन जी आंदोलन और व्यापक विरोध प्रदर्शनों के कारण उथल-पुथल से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद देश में राजनीतिक संकट गहरा गया है। इस बीच, प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुना है। शुक्रवार देर शाम, 73 वर्षीय सुशीला कार्की ने नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल द्वारा दिलाई गई शपथ के साथ अंतरिम प्रधानमंत्री का पदभार संभाला। यह घटनाक्रम नेपाल के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है।

Sushila Karki: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के बिराटनगर में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिराटनगर से पूरी की और 1972 में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से 1975 में राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। भारत के साथ उनका गहरा लगाव रहा है। कार्की बताती हैं कि उनका घर भारत-नेपाल सीमा से मात्र 25 मील दूर था, और बचपन में वे नियमित रूप से सीमा पर स्थित बाजारों में जाया करती थीं। यह अनुभव उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।

Sushila Karki: कानून और न्यायपालिका में शानदार करियर

1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल करने के बाद सुशीला कार्की ने बिराटनगर में वकालत शुरू की। 1985 में वे धरान के महेंद्र मल्टीपल कैंपस में सहायक अध्यापिका के रूप में भी कार्यरत रहीं। उनके करियर का महत्वपूर्ण पड़ाव 2009 में आया, जब उन्हें नेपाल सुप्रीम कोर्ट में अस्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 2010 में वे स्थायी न्यायाधीश बनीं। उनकी ईमानदारी, निडरता और कठिन परिस्थितियों में भी साहसिक निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें न्यायपालिका में एक अलग पहचान दिलाई।

Sushila Karki: नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश

2016 में सुशीला कार्की ने इतिहास रचा, जब वे नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं। 11 जुलाई 2016 से 6 जून 2017 तक उन्होंने इस पद को संभाला। इस दौरान उनके निष्पक्ष और साहसिक फैसलों ने उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया। हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से अछूता नहीं रहा। अप्रैल 2017 में तत्कालीन सरकार ने उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, जिसमें उन पर पक्षपात और सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप का आरोप लगाया गया। इस प्रस्ताव के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। लेकिन जनता ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के समर्थन में आवाज उठाई। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को कार्रवाई से रोक दिया, और बढ़ते दबाव के चलते महाभियोग प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। इस प्रकरण ने कार्की की निडर और स्वतंत्र छवि को और मजबूत किया।

वर्तमान संकट और नई जिम्मेदारी

नेपाल में जेन जी आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों ने देश को एक गहरे राजनीतिक संकट में धकेल दिया है। केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुना जाना एक महत्वपूर्ण कदम है। उनकी नियुक्ति को जनता के एक बड़े वर्ग ने सकारात्मक रूप से लिया है, क्योंकि उनकी ईमानदार और निष्पक्ष छवि पर लोगों का भरोसा है। कार्की के सामने अब देश को स्थिरता प्रदान करने और राजनीतिक संकट को हल करने की बड़ी चुनौती है।

कार्की के सामने कई चुनौतियां

सुशीला कार्की का अनुभव और उनकी निडरता नेपाल के लिए इस संकटपूर्ण समय में एक उम्मीद की किरण है। उनकी नियुक्ति ने न केवल नेपाल के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कठिन परिस्थितियों में भी नेतृत्व की भूमिका मजबूत व्यक्तित्व वाले लोग ही निभा सकते हैं। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कार्की इस संकट को कैसे संभालेंगी और नेपाल को स्थिरता की ओर कैसे ले जाएंगी।

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