Supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ऐतिहासिक निर्णय में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रखा है। सात जजों की संविधान पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। इस फैसले का मतलब है कि एएमयू अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विशेष अधिकारों और संरक्षण का दावा जारी रख सकेगा। यह निर्णय भारत में अल्पसंख्यक संस्थानों के संवैधानिक अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करता है और इससे एएमयू को अपनी नीतियों और संरचनाओं में अल्पसंख्यक पहचान बनाए रखने की कानूनी सुरक्षा मिली है।
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सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया 57 साल पुराना मामला
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस संबंध में 57 साल पुराने मामले को रद्द कर दिया, जो एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सवाल उठा रहा था। यह फैसला अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों और उनके संवैधानिक संरक्षण को लेकर एक अहम निर्णय माना जा रहा है। इस निर्णय के बाद एएमयू अपने अल्पसंख्यक दर्जे के तहत मिलने वाले विशेषाधिकारों को बनाए रखेगा, जिससे उसकी स्वायत्तता और समुदाय के विशेष अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
सात जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 4-3 के बहुमत से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखने का निर्णय लिया है। इस ऐतिहासिक फैसले में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के चार न्यायाधीश — सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जेडी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 का हवाला देते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का समर्थन किया है।
तीन न्यायाधीध थे निर्णय के खिलाफ
हालांकि, इस बेंच में शामिल तीन न्यायाधीश इस निर्णय के खिलाफ थे, लेकिन बहुमत का समर्थन मिलने के कारण यह फैसला पारित हुआ। अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपने संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार प्रदान करता है।
कोई भी धार्मिक समुदाय अपने संस्थान की स्थापना कर सकता, लेकिन…
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी धार्मिक समुदाय अपने संस्थान की स्थापना कर सकता है, लेकिन उसे सिर्फ धार्मिक आधार पर चलाना नहीं जा सकता। संस्थान की स्थापना सरकारी नियमों और कानूनों के अनुसार की जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का हकदार है, जो अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है।
1920 में हुई थी एएमयू की स्थापना
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि अगर अनुच्छेद 30 को केवल उन संस्थानों पर लागू किया जाए जो संविधान लागू होने के बाद स्थापित हुए हैं, तो यह अनुच्छेद कमजोर हो जाएगा। इसका मतलब यह था कि सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि एएमयू, जो 1920 में स्थापित हुआ था, भी इस अधिकार के तहत आता है और उसका अल्पसंख्यक दर्जा बनाए रखना उचित है।
एएमयू के प्रोफेसरों ने किया फैसले का स्वागत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में खुशी का माहौल था। यूनिवर्सिटी छात्र संघ के सदस्यों ने एएमयू के बाहर एक दूसरे को मिठाई खिलाकर इस महत्वपूर्ण निर्णय का स्वागत किया।
‘अदालत का फैसला सराहनीय’
एएमयू के प्रोफेसर मोहम्मद आसिम सिद्दीकी, प्रोफेसर मोहम्मद वसीम अली और प्रोफेसर अस्मत अली खां ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एक लंबी कानूनी लड़ाई थी, और इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत से तैयारी की थी। उन्होंने बताया कि इस फैसले से उन्हें बड़ी राहत मिली है और यह भारतीय न्यायपालिका के प्रति उनके विश्वास को भी मजबूत करता है।
यह समुदाय के लिए एक बड़ी जीत
इन प्रोफेसरों ने कहा कि वे इस फैसले को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं और यह विश्वविद्यालय और उसके समुदाय के लिए एक बड़ी जीत है, क्योंकि एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा गया है, जो उसे विशेष अधिकार और सुरक्षा प्रदान करता है।
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