Sakat Chauth Vrat Katha: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक नगर में साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। उन दोनों का धर्म के प्रति या दान व पुण्य करने में कोई विश्वास नहीं था। साथ ही उनकी कोई संतान भी नहीं थी। एक दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के घर गई। संयोगवश उस दिन सकट चौथ थी। इस कारण पड़ोसन अपने घर पर सकट चौथ की पूजा कर रही थी। यह देखकर साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा कि ये तुम क्या कर रही हो। तब पड़ोसन ने बताया कि आज सकट चौथ का व्रत है, इसे तिलकुट चतुर्थी भी कहते हैं। इसलिए मैंने आज व्रत किया है और पूजा कर रही हूं। इसके बाद फिर साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा कि सकट चौथ का व्रत क्यों करते हैं और इससे क्या फल प्राप्त होता है। तब पड़ोसन ने बताया कि सकट चौथ व्रत में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जो महिलाएं इस व्रत को विधि विधान और श्रद्धापूर्वक करती हैं उन्हें सौभाग्यवती होने के साथ-साथ धन-धान्य और पुत्र का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह सुनकर साहूकारनी पड़ोसन से बोली कि अगर मेरे भी संतान हो गई तो मैं सवा सेर तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत भी रखूंगी। इसके बाद भगवान गणेश ने साहूकारनी की प्रार्थना स्वीकार कर ली और उनके आशीर्वाद से साहूकार की पत्नी कुछ समय बाद ही गर्भवती हो गई।
गर्भवती होने के बाद साहूकारनी ने फिर मन में विचार किया कि अगर मेरे कोई पुत्र हो जाए तो मैं ढाई सेर तिलकुट करूंगी। इसके बाद साहूकारनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र प्राप्ति के बाद फिर साहूकारनी ने भगवान गणेश से कामना की कि मेरे बेटे की शादी हो जाए तो मैं सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी। भगवान गणेश ने उसकी ये प्रार्थना भी सुन ली और फिर साहूकार के बेटे की शादी तय हो गई। इतना सब होने के बाद भी साहूकारनी ने अपना वचन नहीं निभाया और तिलकुटा नहीं किया।
इससे सकट देवता नाराज हो गए और जब साहूकारनी का बेटा शादी के फेरे ले रहा था, तब सकट देवता ने उनके पुत्र को फेरों के बीच से उठाकर एक पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। अचानक वर को गायब देख मौजूद सभी लोग उसे ढूंढने लगे, परंतु साहूकार का बेटा कहीं नहीं मिला इसके बाद सब लोग निराश होकर मंडप से अपने घर लौट गए।
इसके बाद जिस लड़की से साहूकारनी के पुत्र की शादी होने वाली थी वह एक दिन गणगौर पूजन करने के लिए अपनी सहेलियों के साथ जंगल में दूर्वा लेने के लिए गई। तभी जंगल में अचानक उसे एक पीपल के पेड़ से आवाज आई कि ‘ओ मेरी अर्धब्यही’। ऐसी आवाज सुनकर वो लड़की डर गई और तुरंत भागकर अपने घर पहुंची। तब लड़की की मां ने उससे पूछा तो उसने सारी घटना बताई।
इसके बाद उस लड़की की मां भी उसी पीपल के पेड़ के पास गई, तो देखा कि पेड़ पर बैठा आदमी तो उसका दामाद है। मां ने अपने दामाद से पूछा कि तुम इधर क्यों बैठे हो मेरी बेटी से तुम्हारी शादी भी अधूरी रह गई। इस पर साहूकारनी का बेटा बोला कि मेरी मां ने चौथ का तिलकुट करने का बोला था, परंतु आज तक अपना वचन नहीं निभाया। जिससे सकट देवता नाराज हो गए और इसी कारण से उन्होंने मुझे शादी के बीच से उठाकर यहां बिठा दिया। सच पता चलने पर लड़की की मां तभी साहूकारनी के घर पहुंची और पूछा कि तुमने सकट चौथ के लिए मन में कुछ विचार किया था क्या।
इस पर साहूकारनी बोली कि हां मैंने तिलकुट बोला था। इसके बाद साहूकारनी ने फिर सकट चौथ देवता से कामना की कि यदि मेरा पुत्र घर लौट आए, तो मैं ढाई मन का तिलकुट करूंगी। इस पर भगवान गणेश एक बार फिर से उसकी इच्छा पूरी कर दी और साहूकार का बेटा घर आ गया।
पुत्र के घर आने पर साहूकारनी ने उसका धूमधाम से विवाह कराया। साहूकार के घर बहू आने पर साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली कि हे! सकट महाराज, आज आपकी कृपा से ही मेरे पुत्र पर आई विपत्ति दूर हुई है। अब मैं आपकी महिमा जान गई हूं। आज से हर सकट चौथ पर मैं तिलकुट करके आपका व्रत करूंगी। मान्यता है कि इस घटना के बाद से सभी नगरवासियों ने भी सकट चौथ का व्रत करना प्रारंभ कर दिया।