Delhi Election Result 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आ गए हैं, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 48 सीटों पर कब्जा जमाया है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) 22 सीटों पर सिमट गई है। कांग्रेस एक बार फिर अपना खाता खोलने में असफल रही। यह चुनावी नतीजे आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हुए, क्योंकि 2020 में उसने 62 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया था।
आइए जानते हैं कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के पीछे कौन-कौन सी प्रमुख वजहें रहीं:
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1 एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर
लगातार 10 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद आम आदमी पार्टी को इस बार एंटी-इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ा। हालांकि, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पार्टी ने कुछ अच्छे कार्य किए, लेकिन दिल्ली की खराब एयर क्वालिटी, बढ़ता प्रदूषण, और यमुना के गंदे पानी जैसी समस्याओं ने जनता को निराश किया। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने लगातार केंद्र सरकार पर दिल्ली के विकास कार्यों में रोड़े अटकाने के आरोप लगाए, लेकिन जनता ने इसे एक ‘बहानेबाजी’ के रूप में देखा और भाजपा को मौका देने का मन बना लिया।
2 भ्रष्टाचार के आरोप और नेतृत्व संकट
आम आदमी पार्टी हमेशा से खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली पार्टी के रूप में पेश करती आई है। लेकिन इस बार उसकी खुद की छवि पर दाग लग गए। शराब नीति से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पार्टी के कई बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हुई, जिनमें संजय सिंह, मनीष सिसोदिया और यहां तक कि खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल रहे।
‘शीश महल’ विवाद ने भी अरविंद केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाया। सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उनके सरकारी आवास के निर्माण में 7.91 करोड़ रुपये से 33.66 करोड़ रुपये तक खर्च किए गए। इस मुद्दे को भाजपा ने जोर-शोर से उठाया, जिससे जनता के बीच नकारात्मक संदेश गया।
3 लोकलुभावन योजनाएं और असली विकास का अभाव
आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली, पानी, और महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा जैसी योजनाओं के जरिए जनता को आकर्षित किया था। लेकिन जनता अब सिर्फ मुफ्त योजनाओं से संतुष्ट नहीं थी। खराब सड़कों, जलभराव, सीवर की समस्या, और ट्रैफिक जाम जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी ने दिल्ली के मतदाताओं को निराश किया।
दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने और 20 लाख नौकरियों का वादा भी अधूरा रह गया। इन अधूरे वादों के चलते दिल्ली के अपर और मिडिल क्लास मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर हो गया।
4 आप के बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ना
पिछले कुछ वर्षों में आम आदमी पार्टी के कई सीनियर नेताओं ने पार्टी से नाता तोड़ लिया। प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, और मयंक गांधी जैसे संस्थापक सदस्यों ने पार्टी छोड़ दी। वहीं, मंत्री कैलाश गहलोत का इस्तीफा भी पार्टी के लिए झटका साबित हुआ। इन नेताओं की गैरमौजूदगी से पार्टी की रणनीतिक क्षमताओं पर असर पड़ा और भाजपा ने इसका पूरा फायदा उठाया।
5 एमसीडी में आप की जीत का उल्टा असर
साल 2022 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली नगर निगम (MCD) चुनाव में जीत दर्ज की थी, लेकिन यह जीत उसके लिए नुकसानदायक साबित हुई। पार्टी ने वादा किया था कि वह दिल्ली को साफ-सुथरा और स्मार्ट सिटी बनाएगी, लेकिन सफाई व्यवस्था और सड़क निर्माण के काम में लापरवाही जनता को रास नहीं आई। एमसीडी में आप सरकार की अक्षमता ने विधानसभा चुनाव में भाजपा को फायदा पहुंचाया।
6 कांग्रेस से गठबंधन और फिर अलगाव
लोकसभा चुनाव 2024 में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था, लेकिन विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं। इससे जनता के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हुई। दूसरी ओर, भाजपा ने बिहार में जेडीयू और लोजपा के साथ मजबूत गठबंधन किया, जिससे उसने दिल्ली में भी एकजुटता का संदेश दिया और मतदाताओं का विश्वास जीता।
7 मोहल्ला क्लीनिक और स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल
आम आदमी पार्टी ने अपने मोहल्ला क्लीनिक मॉडल को स्वास्थ्य सुधार का सबसे बड़ा उदाहरण बताया, लेकिन भाजपा ने इस मॉडल पर कई सवाल उठाए। भाजपा नेताओं ने पूछा कि दिल्ली में कितने नए अस्पताल बने, अस्पतालों की स्थिति में क्या सुधार हुआ, और कितने लोगों को मुफ्त दवाएं मिलीं। दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना लागू न होने के कारण भी जनता में नाराजगी थी। भाजपा ने इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाया और जनता तक पहुंचाया, जिससे आप को नुकसान हुआ।
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