Andar Ki Baat By Dharmendra Paigwar: राजधानी भोपाल की नगर निगम में एल्डरमैन से राजनीति की शुरुआत करने वाले सुरेश पचौरी केंद्र में दो बार राज्य मंत्री और 24 साल तक राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। सुरेश पचौरी गांधी नेहरू परिवार से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष के सलाहकार रहे अहमद पटेल के मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा करीबी रहे हैं। उन्होंने शनिवार सुबह कांग्रेस को बाय-बाय कह दिया। हालांकि पचौरी और इंदौर के पूर्व विधायक संजय शुक्ला मार्च 2020 में ऑपरेशन लोटस के वक्त भी कुछ शर्तों के कारण भाजपा में जाते-जाते रह गए थे। उनके भाजपा में जाने की पटकथा 4 साल पहले लिखी गई थी।
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बात पुरानी है… पचौरी असहज महसूस कर रहे थे
बात मार्च 2020 की है। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से अनबन होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश के 22 कांग्रेस विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी थी। उस वक्त कांग्रेस के 22 विधायकों को पहले हरियाणा के मानेसर और उसके बाद भाजपा शासित कर्नाटक के बेंगलुरु ले जाया गया था। कांग्रेस सरकार के दौरान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी से सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया ही नहीं पचोरी भी परेशान थे और वह कांग्रेस में असहज महसूस कर रहे थे।
सिंधिया की बगावत के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी और कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि उस वक्त सिंधिया और पचौरी की आपस में बात नहीं हो पाई थी। कांग्रेस के महाकौशल के एक नेता के जरिए सुरेश पचौरी की भाजपा में बात हुई लेकिन महाकौशल के नेता वही पद चाहते थे जिस पद पर वह कांग्रेस सरकार में थे। उस वक्त सुरेश पचौरी खेमे की तरफ से उन्हें राज्यसभा में भेजने की भी शर्त रखी गई थी। तब बात नहीं बन पाई और सुरेश पचौरी कांग्रेस में ही रह गए।
संजय उस वक्त मान जाते तो आज मंत्री होते
2020 में कांग्रेस सरकार को गिराने की रणनीति में जुटे भाजपा नेताओं के पास इंदौर एक से कांग्रेस विधायक बने संजय शुक्ला का भी नाम था। दरअसल भाजपा का एक बड़ा धड़ा संजय शुक्ला को मूल रूप से कांग्रेसी मानने की बजाय भटका हुआ भाजपाई मानता था। उनके पिता स्वर्गीय विष्णु प्रसाद शुक्ला बड़े भैया का भाजपा में बहुत सम्मान था और उनके कारण ही संजय से संपर्क किया गया था।
कुछ शर्तों के कारण बात नहीं बन पाई। उसमें एक बड़ा कारण सुरेश पचौरी भी थे। पचौरी समर्थक 2020 में इस कारण रुक गए थे कि वह एक साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाएंगे लेकिन समय बीतने के साथ भाजपा को उस वक्त जरूरत महसूस नहीं हुई।
एक फैसले से पिछड़ा शुक्ला परिवार
2003 के विधानसभा चुनाव में फैसला होने के बाद उसे फैसले को भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा पलट दिए जाने के कारण इंदौर का शुक्ला परिवार राजनीति में 20 साल पिछड़ गया। संजय शुक्ला के बड़े भाई राजेंद्र शुक्ला इंदौर एक से भाजपा की टिकट के दावेदार थे। उस वक्त दिवंगत प्यारेलाल खंडेलवाल भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव थे और भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल थे। राजेंद्र-संजय के पिता स्वर्गीय विष्णु प्रसाद शुक्ला प्यारेलाल जी के ही शिष्य माने जाते हैं।
स्वर्गीय खंडेलवाल की सिफारिश पर राजेंद्र शुक्ल का नाम इंदौर एक से तय हो गया। इस बीच मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार उमा भारती ने इंदौर तीन पर चर्चा के दौरान यह बात रख दी कि अश्विन जोशी बाहुबली है और उनके खिलाफ बाहुबली के तौर पर राजेंद्र शुक्ला को प्रत्याशी बनाया जाना चाहिए। उमा भारती की बात का तत्कालीन संगठन महामंत्री ने भी समर्थन किया। राजेंद्र शुक्ल का नाम इंदौर एक से काटकर इंदौर तीन में कर दिया गया। भाजपा की लहर में राजेंद्र शुक्ला बहुत कम अंतर से चुनाव हार गए। इसके बाद उनके छोटे भाई संजय शुक्ला इंदौर एक से कांग्रेस के उम्मीदवार बन गए।