Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। शीर्ष कोर्ट कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक मुस्लिम महिला पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। एक मुस्लिम शख्स ने अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए गुजारा भत्ता को लेकर अहम फैसला सुनाया है। मोहम्मद अब्दुल समद नाम के शख्स ने शीर्ष कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं भी अपने पति से भरण पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं।
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मुस्लिम महिलाएं भी पति से मांग सकती है भरण पोषण के लिए भत्ता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कह दिया है कि यह फैसला हर धर्म की महिलाएं पर लागू होगा। मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं। इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने अहम फैसला सुनाया है। पीठ ने आगे कहा कि गुजारा भत्ता कोई दान नहीं है, बल्कि शादीशुदा महिलाओं का अधिकार है। ये धारा सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। मुस्लिम महिलाएं भी इस प्रावधान का सहारा ले सकती हैं।
जानिए पूरा मामला क्या है
आइये जानते है आखिरकार पूरा मामला क्या है। दरअसल, पिछले दिनों तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद नाम के व्यक्ति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा कि उनकी पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है। उनका कहना था कि महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के अनुरूप चलना होगा। ऐसे में कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि वो किसे प्राथमिकता दे, मुस्लिम महिला अधिनियम या सीआरपीसी की धारा 125 को। सुप्रीम कोर्ट ने आखिर में मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया।
क्या है सीआरपीसी की धारा 125
सीआरपीसी की धारा 125 में पति अपनी पत्नी, बच्चों और माता–पिता को गुजारा भत्ता तभी देता है, जब उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होता है। अगर उनके पास आजीविका का कोई साधन होता है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें भत्ता देने से इनकार कर सकता है।
जानिए क्या कहता है इस्लामी रवायत
महज इद्दत की अवधि तक ही मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिया जाता है। आमतौर पर इद्दत की अवधि मात्र तीन महीने की तय की गई है। इस्लामी रवायत के अनुसार जब किसी मुस्लिम महिला के पति का निधन हो जाता या उसे तलाक दे दिया जाता है। ऐसी स्थिति में महिला को तीन महीने तक शादी की इजाजत नहीं होती है। इस दौरान तीन महीनों तक महिला अपने पति से गुजारा भत्ता ले सकती है। इसके बाद उसे यह भत्ता नहीं दिया जाता है। अब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता का रास्ता साफ कर दिया है।