1984 Anti-Sikh Riots Case: साल 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने मंगलवार को कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई। यह मामला 1 नवंबर 1984 को दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में दो सिख नागरिकों, जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह को जिंदा जलाने से जुड़ा है। अदालत ने इससे पहले 12 फरवरी 2025 को सज्जन कुमार को दोषी करार दिया था। 41 साल बाद आए इस फैसले को पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
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क्या था मामला?
1 नवंबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में भी उग्र भीड़ ने सिख समुदाय के घरों पर हमला किया था। इसी दौरान जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह को उनके घर से बाहर खींचकर टायर डालकर जिंदा जला दिया गया। इस हमले में उनके परिवार के कई अन्य सदस्य भी घायल हुए थे और उनका घर पूरी तरह खाक हो गया था।
पंजाबी बाग थाने में दर्ज हुई थी एफआईआर
मामले की शुरुआत पंजाबी बाग थाने में एफआईआर दर्ज होने से हुई थी। लेकिन शुरुआती जांच में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। बाद में, जस्टिस जी.पी. माथुर कमेटी की सिफारिशों पर केंद्र सरकार ने 2015 में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया। एसआईटी ने 114 बंद मामलों को दोबारा खोला, जिनमें यह मामला भी शामिल था। जांच के दौरान एसआईटी ने पाया कि सज्जन कुमार ने भीड़ को उकसाने में मुख्य भूमिका निभाई थी।
अदालत की कार्यवाही और सज्जन कुमार का बचाव
16 दिसंबर 2021 को अदालत ने सज्जन कुमार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 147 (दंगा), 148 (हथियार से लैस दंगा), 149 (गैरकानूनी जमावड़े के तहत अपराध), 302 (हत्या), 308 (गंभीर चोट पहुंचाने का प्रयास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 395 (डकैती), 397 (डकैती के दौरान घातक हथियार का प्रयोग), 427 (संपत्ति नुकसान), 436 (आगजनी), और 440 (नुकसान पहुंचाने का प्रयास) के तहत आरोप तय किए थे। सज्जन कुमार ने सभी आरोपों से इनकार किया था और खुद को निर्दोष बताया था। अदालत ने 1 नवंबर 2023 को उनका बयान दर्ज किया था।
पीड़ित परिवार और समाजसेवी की प्रतिक्रिया
पीड़ित परिवार की ओर से लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी सोनू जंडियाला ने सज्जन कुमार के लिए फांसी की सजा की मांग की थी। उन्होंने बताया कि घटना के दिन उग्र भीड़ ने जसवंत सिंह और तरुणदीप सिंह को बेरहमी से पीटा और फिर टायर डालकर आग लगा दी। जंडियाला ने कहा, बहुत से पीड़ित अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी आत्मा को शांति देने के लिए दोषियों को सख्त सजा मिलनी जरूरी थी। यह केवल एक परिवार की लड़ाई नहीं थी, बल्कि पूरे सिख समुदाय के लिए न्याय की जंग थी। आज, 41 साल बाद उम्मीद की एक किरण जगी है।
सजा का महत्व और सियासी प्रतिक्रिया
सज्जन कुमार की सजा को 1984 दंगे पीड़ितों के लिए एक ऐतिहासिक न्याय माना जा रहा है। हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है, जबकि विपक्षी दलों ने फैसले का स्वागत किया है। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, यह सिख समुदाय के साथ हुए अन्याय के खिलाफ न्याय की जीत है। इतने वर्षों बाद भी न्याय मिलना दर्शाता है कि कानून के हाथ लंबे हैं।
41 साल बाद न्याय
1984 सिख विरोधी दंगे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय हैं। इस फैसले ने न केवल पीड़ित परिवारों को राहत दी है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि भले ही न्याय में देरी हो, पर वह मिलता जरूर है। सज्जन कुमार की उम्रकैद की सजा ने उन हजारों परिवारों के घावों पर मरहम लगाने का काम किया है, जिन्होंने इस हिंसा में अपनों को खोया था।
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