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Sunday, June 8, 2025
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Shattila Ekadashi 2024 Vrat Katha: षटतिला एकादशी कल, व्रत में जरूर पढ़ें ये कथा

Shattila Ekadashi 2024 Vrat Katha: माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। कल 6 फरवरी, मंगलवार को षटतिला एकादशी मनाई जाएगी। मान्यता के अनुसार जो लोग व्रत करते हैं उन्हें षटतिला एकादशी की व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।

Shattila Ekadashi 2024 Vrat Katha: सनातन धर्म में एकादशी तिथि को बहुत महत्व दिया गया है। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार षटतिला एकादशी 6 फरवरी को मंगलवार के दिन पड़ रही है। मान्यता है कि षटतिला एकादशी का व्रत करने से साधक को धन-धान्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, अन्यथा पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता पाता। तो आइए जानते हैं षटतिला एकादशी की व्रत कथा…

षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha in Hindi)
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी थी। वह हमेशा पूजा और व्रत तो किया करती थी लेकिन उसने कभी किसी ब्राह्मण या गरीब को कोई वस्तु का दान नहीं किया। ब्राह्मणी की पूजा-पाठ और व्रत से भगवान श्रीविष्णु काफी प्रसन्न थे। तब भगवान विष्णु ने सोचा कि ब्राह्मणी ने पूजा और व्रत करके अपने शरीर को तो शुद्ध कर लिया है, परंतु कभी कोई दान नहीं किया। इसलिए ब्राह्मणी को मृत्यु के पश्चात बैकुंठ धाम तो प्राप्त हो जाएगा लेकिन बैकुंठ लोक में इसके भोजन-पानी का क्या होगा।

ये बात सोचने के बाद भगवान श्रीहरि भेष बदलकर ब्राह्मणी के पास गए और उससे भिक्षा मांगने लगे। साधु के भेष में जब भगवान विष्णु ब्राह्मणी के पास पहुंचे तो उसने साधु को भिक्षा में एक मिट्टी का ढेला दे दिया। भगवान उसे लेकर बैकुंठ लोक वापस आ गए। कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी का देहांत हो गया और उसको बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई। ब्राह्मणी द्वारा साधु को भिक्षा में मिट्टी देने के कारण उसे बैकुंठ लोक में महल प्राप्त हुआ लेकिन उसके घर में खाने को कुछ भी नहीं था। ये देखकर भगवान विष्णु से ब्राह्मणी ने कहा कि, ‘मैंने अपने जीवन में हमेशा पूजा-पाठ और व्रत किया, फिर भी यहां मेरे महल में कुछ भी खाने को नहीं है’।

तब भगवान ने उसकी इस परेशानी को सुन कर कहा कि, ‘तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिलकर षटतिला एकादशी का व्रत और दान का महत्व समझो। फिर उसका पालन करना। इससे तुम्हारी सारी गलतियां माफ हो जाएंगी और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी’। ब्राह्मणी ने देवियों से षटतिला एकादशी के व्रत को पूछा और उसका महत्व सुना। फिर ब्राह्मणी ने इस व्रत को करने के साथ ही तिल का भी दान किया। जिसके बाद ब्राह्मणी को बैकुंठ लोक में सब कुछ मिल गया। मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन जो व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उसे उतने ही हजार वर्षों तक बैकुंठ लोक में सुख मिल रहता है।

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