Fake Encounter: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पुलिस की एक गंभीर साजिश का पर्दाफाश हुआ है। अदालत ने पाया कि बहजोई थाना पुलिस ने एक व्यक्ति को उस समय लूट का आरोपी बना दिया, जब वह जेल में बंद था। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने तत्कालीन थाना प्रभारी (कोतवाल) समेत 12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का सख्त आदेश दिया है। कोर्ट ने इसे पद के दुरुपयोग, दस्तावेजों की जालसाजी और षड्यंत्र का मामला करार दिया।
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Fake Encounter: जेल में था आरोपी, फिर कैसे हुई लूट?
मामला 25 अप्रैल 2022 का है, जब बहजोई थाना क्षेत्र में दूध कारोबारी दुर्वेश से एक लाख रुपये की लूट हुई। पुलिस ने ओमवीर को इस लूट का मुख्य आरोपी बनाया। लेकिन ओमवीर ने कोर्ट में सरकारी रिकॉर्ड पेश कर साबित किया कि लूट के समय (25 अप्रैल 2022) वह बदायूं जिला जेल में बंद था। वह 11 अप्रैल 2022 से 12 मई 2022 तक किसी अन्य मामले में जेल में निरुद्ध था। उसकी जमानत 26 अप्रैल 2022 को मंजूर हुई थी, लेकिन वह 12 मई को ही बाहर आया। फिर भी पुलिस ने उसे लूट और फर्जी मुठभेड़ का आरोपी दिखाया।
Fake Encounter: फर्जी एनकाउंटर और गिरफ्तारी का खेल
7 जुलाई 2022 को बहजोई पुलिस ने ओमवीर, धीरेंद्र और अवनेश को कथित मुठभेड़ में गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। 12 जुलाई 2022 को पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, जिसमें ओमवीर को लूट का आरोपी बताया गया। ओमवीर का आरोप है कि पुलिस ने साजिश रचकर फर्जी बरामदगी दिखाई और उसे झूठे मुकदमे में फंसाया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विभांशु सुधीर ने साक्ष्यों की जांच के बाद पाया कि पुलिस की कहानी पूरी तरह झूठी है। कोर्ट ने कहा, “प्रथम दृष्टया यह षड्यंत्र, गलत जांच और दस्तावेजों की जालसाजी का मामला प्रतीत होता है।”
Fake Encounter: कोर्ट का सख्त आदेश: 12 पुलिसकर्मियों पर FIR
अदालत ने तत्कालीन कोतवाल पंकज लवानिया, इंस्पेक्टर राहुल चौहान, दारोगा प्रबोध कुमार सहित कुल 12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया। बहजोई थाना पुलिस को तीन दिन में रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। हालांकि, तत्कालीन सीओ गोपाल सिंह को साक्ष्य न मिलने के कारण राहत दे दी गई। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की नजीरों का हवाला देते हुए लोकसेवकों के उत्तरदायित्व पर कड़ी टिप्पणी की। पुलिस महकमे में इस फैसले से हड़कंप मच गया है।
Fake Encounter: साढ़े तीन साल की न्याय की लड़ाई
ओमवीर ने न्याय के लिए साढ़े तीन साल तक अधिकारियों के चक्कर लगाए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अंत में अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां जेल रिकॉर्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों से उसकी बात साबित हो गई। यह मामला उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल उठाता है। फर्जी एनकाउंटर और निर्दोषों को फंसाने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन कोर्ट का ऐसा सख्त कदम दुर्लभ है।
पुलिस व्यवस्था पर उठते सवाल
यह घटना संभल जिले में पुलिस की विश्वसनीयता को चुनौती देती है, जहां हाल के वर्षों में अन्य विवाद भी सामने आए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी साजिशें आम नागरिकों का भरोसा तोड़ती हैं। सरकार से उम्मीद की जा रही है कि दोषी पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई होगी। ओमवीर जैसे पीड़ितों के लिए यह फैसला राहत की किरण है, जो साबित करता है कि न्याय व्यवस्था अंततः सच की जीत सुनिश्चित करती है।
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