Aravalli Row: अरावली पर्वतमाला को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद और पर्यावरणविदों के विरोध के बीच केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राजस्थान, हरियाणा और गुजरात सहित सभी संबंधित राज्यों को निर्देश जारी किए हैं कि अरावली क्षेत्र में कोई नई माइनिंग लीज नहीं दी जाएगी। यह रोक पूरी अरावली रेंज पर समान रूप से लागू होगी, जो गुजरात से दिल्ली तक फैली हुई है। सरकार का कहना है कि यह फैसला अवैध और अनियमित खनन को रोकने तथा प्राचीन पर्वतमाला की अखंडता बनाए रखने के लिए लिया गया है।
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Aravalli Row: नई परिभाषा पर मचा था बवाल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2025 में अरावली हिल्स और रेंज की एक समान परिभाषा को मंजूरी दी थी। इस परिभाषा के अनुसार, ‘अरावली हिल’ वह भूमि है जो अपने स्थानीय आसपास से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो, और ‘रेंज’ दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह हो जो 500 मीटर के दायरे में हों।
पर्यावरणविदों और विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह परिभाषा अरावली के दायरे को कम कर रही है, जिससे कम ऊंचाई वाली संवेदनशील क्षेत्रों में खनन और निर्माण को बढ़ावा मिल सकता है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे ‘खनन माफिया’ को फायदा पहुंचाने वाला कदम बताया। हालांकि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि नई परिभाषा से 90 प्रतिशत से अधिक अरावली क्षेत्र संरक्षित रहेगा और केवल 0.19 प्रतिशत में ही कानूनी खनन संभव है।
Aravalli Row: नई लीज पर बैन, पुरानी खदानों पर निगरानी
मंत्रालय ने राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि नई गाइडलाइन तैयार होने तक कोई नई माइनिंग लीज जारी नहीं की जाए। साथ ही, इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) को अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करने का काम सौंपा गया है, जहां खनन पर पूरी तरह रोक लगाई जाएगी। यह पहचान पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और लैंडस्केप स्तर पर विचार करके की जाएगी। पहले से चल रही खदानों के लिए राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार पर्यावरण सुरक्षा उपायों का सख्त पालन सुनिश्चित करना होगा। मंत्रालय ने जोर दिया कि सरकार अरावली इकोसिस्टम की लंबे समय तक सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, क्योंकि यह मरुस्थलीकरण रोकने, जैव विविधता संरक्षण, भूजल रिचार्ज और क्षेत्रीय पर्यावरण सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Aravalli Row: अरावली की पर्यावरणीय महत्वता क्यों?
अरावली दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो थार मरुस्थल के फैलाव को रोकती है। अनियंत्रित खनन से यहां की हरियाली, वन्यजीव और भूजल स्तर को भारी नुकसान पहुंचा है। दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता और जल संकट में भी अरावली की भूमिका अहम है। विशेषज्ञों का कहना है कि खनन से पहाड़ियों की प्राकृतिक संरचना छिन्न-भिन्न हो गई है, जिससे मरुस्थल का विस्तार बढ़ रहा है। इस फैसले से संरक्षित क्षेत्र का विस्तार होगा और बहाली कार्यों को गति मिलेगी।
Aravalli Row: सराहना और सवाल दोनों
पर्यावरणविदों ने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन कुछ का मानना है कि नई परिभाषा अभी भी कमजोर है और पूर्ण संरक्षण के लिए और सख्त कदम चाहिए। विपक्ष ने इसे ‘यू-टर्न’ बताया, क्योंकि पहले आरोप लग रहे थे कि सरकार खनन को बढ़ावा दे रही है। गुजरात के वन मंत्री ने भी आश्वासन दिया कि राज्य में अरावली में कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं होगी।
यह फैसला अरावली को बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सस्टेनेबल माइनिंग प्लान जल्द तैयार होना चाहिए। सरकार की प्रतिबद्धता से उम्मीद है कि यह प्राचीन धरोहर सुरक्षित रहेगी।
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