Bihar Elections: आगामी बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने शनिवार को उन 32 विधानसभा सीटों की पहली सूची जारी कर दी, जहां पार्टी चुनाव लड़ने वाली है। यह घोषणा किशनगंज स्थित पार्टी दफ्तर में बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान और राष्ट्रीय प्रवक्ता आदिल हुसैन ने की। पार्टी ने उम्मीदवारों की नामावली बाद में जारी करने का ऐलान किया है। कुल 16 जिलों में फैलीं ये सीटें मुख्य रूप से सीमांचल क्षेत्र पर केंद्रित हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का प्रभाव निर्णायक माना जाता है। एआईएमआईएम ने पहले ही घोषणा की है कि वह बिहार की 243 सीटों में से 100 पर उम्मीदवार उतारेगी, ताकि एनडीए और महागठबंधन के बीच ‘तीसरा विकल्प’ के रूप में उभर सके।
Table of Contents
Bihar Elections: आरजेडी को गठबंधन प्रस्ताव, लेकिन स्वतंत्र लड़ाई का फैसला
अख्तरुल ईमान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सेकुलर वोटों के बिखराव को रोकने के उद्देश्य से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को गठबंधन का प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन कोई सकारात्मक जवाब न मिलने पर तीसरे मोर्चे के रूप में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा, “हम जल्द ही सभी 32 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित कर देंगे। पुरुष प्रधान देश में महिलाओं को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देंगे।” ईमान ने जोर देकर कहा कि पार्टी मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ अन्य वंचित वर्गों के मुद्दों को उठाएगी, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय। यह कदम एआईएमआईएम की विस्तारवादी रणनीति का हिस्सा है, जो 2020 के चुनावों में सीमांचल में मिली सफलता पर आधारित है।
Bihar Elections: 32 सीटों की सूची: सीमांचल पर फोकस
पार्टी ने जिन 32 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, वे हैं: किशनगंज, कोचाधामन, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, अमौर, बायसी, कस्बा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी, बरारी, कदवा, हाट, अररिया, शेरघाटी, बेलागंज, ढाका, नरकटिया, नवादा शहर, सिकंदरा, नाथनगर, भागलपुर, सिवान शहर, जाले, दरभंगा ग्रामीण, केवटी, गौरा बौराम, कल्याणपुर, बाजपट्टी, बिस्फी, महुआ और गोपालगंज। यह सूची मुख्य रूप से किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर और दरभंगा जैसे जिलों पर केंद्रित है, जहां मुस्लिम आबादी 30-40 प्रतिशत तक है। इन क्षेत्रों में एआईएमआईएम का वोटबैंक मजबूत माना जाता है।
Bihar Elections: 2020 की सफलता और हालिया चुनौतियां
2020 के विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के साथ गठबंधन कर सीमांचल में पांच सीटें जीती थीं। लेकिन 2022 में चार विधायकों के आरजेडी में चले जाने से पार्टी की विधानसभा में केवल एक सीट बची। अख्तरुल ईमान ही अब पार्टी के इकलौते विधायक हैं। हाल ही में पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल के किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया जिलों का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ के जरिए मुस्लिम वोटबैंक को मजबूत करने का प्रयास किया। ओवैसी ने कहा था कि पार्टी बिहार में अल्पसंख्यकों की अनदेखी को चुनौती देगी।
तीसरे विकल्प की संभावना और राजनीतिक प्रभाव
एआईएमआईएम का यह फैसला बिहार की सियासत में नया समीकरण बना सकता है। पार्टी दावा कर रही है कि 100 सीटों पर लड़कर वह एनडीए (एनडीए) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वामपंथी) के बीच तीसरा विकल्प बनाएगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एआईएमआईएम का सीमांचल में उतरना महागठबंधन के लिए चुनौती हो सकता है, क्योंकि 2020 में पार्टी ने सेकुलर वोटों को बांटा था। हालांकि, ईमान ने कहा कि अब पार्टी अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों से तीसरे मोर्चे के लिए बातचीत कर रही है। चुनाव आयोग ने बिहार चुनावों को दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को कराने का ऐलान किया है, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी।
महिलाओं को प्रतिनिधित्व और भविष्य की रणनीति
अख्तरुल ईमान ने महिलाओं को टिकट देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी लिंग समानता को बढ़ावा देगी और कम से कम 30 प्रतिशत सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारेगी। इसके अलावा, पार्टी युवाओं और पिछड़े वर्गों को जोड़ने के लिए डिजिटल कैंपेन और जमीनी स्तर पर सभाओं पर फोकस करेगी। ओवैसी की यात्रा के दौरान हजारों समर्थकों ने भाग लिया, जो पार्टी के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। एआईएमआईएम का यह कदम न केवल मुस्लिम वोटों को एकजुट करेगा, बल्कि बिहार की राजनीति में बहुलवाद को मजबूत करने का प्रयास भी है।
चुनावी माहौल में नया ट्विस्ट
बिहार चुनावों में एनडीए और महागठबंधन सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे रहे हैं, वहीं एआईएमआईएम का तीसरा विकल्प उभरना दोनों के लिए खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों पर एआईएमआईएम का प्रदर्शन महागठबंधन की हार-जीत तय कर सकता है। पार्टी की यह रणनीति बिहार के 17 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज पकड़ने की कोशिश है, जो विधानसभा में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व से असंतुष्ट हैं। उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही सियासी घमासान और तेज हो जाएगा।
यह भी पढ़ें:-