34.1 C
New Delhi
Tuesday, September 16, 2025
HomeदेशSupreme Court: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, विवाह अमान्य होने पर भी...

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, विवाह अमान्य होने पर भी मिलेगा गुजारा भत्ता

Hindu Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिस पति-पत्नी का विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अमान्य घोषित किया गया है, वह दूसरे पति-पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता या भरण-पोषण पाने का हकदार है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 की व्याख्या करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यदि किसी विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अमान्य घोषित किया जाता है, तो भी पति-पत्नी में से कोई भी दूसरे पक्ष से स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण प्राप्त कर सकता है। यह फैसला तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एजी मसीह शामिल थे।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह अमान्य घोषित किया जाता है, तो भी विवाह समाप्त होने तक लंबित अंतरिम भरण-पोषण की मांग को खारिज नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर भी विचार किया कि क्या विवाह अमान्य घोषित करने की प्रक्रिया के दौरान पति या पत्नी को भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार है।

अपीलकर्ता की दलीलें

अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत यदि कोई विवाह शून्य घोषित कर दिया जाता है, तो वह कानूनी रूप से कभी अस्तित्व में था ही नहीं। ऐसे में, विवाह निरस्त होने के बाद पति या पत्नी को भरण-पोषण देने का कोई आधार नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का तर्क

पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत, वैवाहिक न्यायालय किसी भी डिक्री के समय या उसके बाद स्थायी गुजारा भत्ता देने का अधिकार रखता है। अदालत ने यह भी कहा कि जब कोई विवाह शून्य घोषित किया जाता है, तब भी धारा 25 के तहत भरण-पोषण का दावा किया जा सकता है। इस धारा को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि तलाक की डिक्री और विवाह को अमान्य घोषित करने वाली डिक्री में कोई अंतर नहीं किया गया है।

सीआरपीसी की धारा 125 और धारा 25 में अंतर

पीठ ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत केवल पत्नी या बच्चे ही भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं, जबकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 पति और पत्नी दोनों को यह अधिकार देती है। इसलिए, दोनों धाराओं को समान रूप से नहीं देखा जा सकता।

बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की निंदा

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के उस फैसले की आलोचना की, जिसमें शून्य विवाह में शामिल महिला को “अवैध पत्नी” और “वफादार रखैल” कहा गया था। अदालत ने इसे महिला विरोधी बताते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।

न्यायालय की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि भरण-पोषण की मांग करने वाले व्यक्ति का आचरण अनुचित है, तो वैवाहिक न्यायालय उसके दावे को खारिज कर सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण प्रदान करना विवेकाधीन है और इसका निर्धारण प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर किया जाएगा।

अमान्य विवाह में भी गुजारा भत्ता का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि भले ही वैवाहिक न्यायालय को प्रथम दृष्टया लगे कि विवाह शून्य या शून्यकरणीय है, फिर भी लंबित भरण-पोषण देने से रोका नहीं जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत अंतरिम राहत देते समय न्यायालय को संबंधित पक्षों के आचरण पर विचार करना होगा।

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी विवाह को धारा 11 के तहत शून्य घोषित किया गया है, तो भी पति या पत्नी धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता मांग सकते हैं। हालांकि, इसे मंजूर करना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा और प्रत्येक मामले के तथ्यों व पक्षों के आचरण के आधार पर तय किया जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण के अधिकार को नकारना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा, जो सम्मानजनक जीवन जीने की गारंटी देता है।

यह भी पढ़ें:-

PM Modi France Visit: समाज और सुरक्षा के लिए AI बहुत जरूरी…सावधानी की भी जरूरत, पेरिस एआई एक्शन समिट में बोले पीएम मोदी

- Advertisement - Advertisement - Yatra Swaaha
RELATED ARTICLES
New Delhi
haze
34.1 ° C
34.1 °
34.1 °
49 %
2.1kmh
20 %
Tue
34 °
Wed
36 °
Thu
37 °
Fri
37 °
Sat
38 °

Most Popular