35.1 C
New Delhi
Sunday, June 1, 2025
Homeछत्तीसगढ़Chhattisgarh: लगातार बढ़ रहा हाथी-मानव संघर्ष, इसलिए इंसानों को मार रहे या...

Chhattisgarh: लगातार बढ़ रहा हाथी-मानव संघर्ष, इसलिए इंसानों को मार रहे या मारे जा रहे

Chhattisgarh: औद्योगीकरण के चलते मानव गतिविधियों की वृद्धि ने जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

Chhattisgarh: औद्योगीकरण के चलते मानव गतिविधियों की वृद्धि ने जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। खेती के लिए वनों की कटाई और शहरी क्षेत्रों में भोजन की तलाश में जंगली जानवरों का आना, दोनों ही स्थितियों ने मानव और जंगली जीवों के बीच अस्तित्व की लड़ाई को जन्म दिया है। उत्तरी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और सरगुजा संभाग में हाथियों के साथ मनुष्यों का संघर्ष तेजी से बढ़ रहा है। हाल के एक महीने में हाथियों के हमलों में कोरबा, सरगुजा और जशपुर जिलों में 13 लोगों की जान चली गई, जिनमें दो बच्चे भी शामिल हैं। खासकर महिलाओं की जनहानि अधिक हुई है।

जंगलों की कटाई से बढ़ रही अस्तित्व की लड़ाई

हाथियों के हमले के साथ-साथ, इन जानवरों के झुंडों ने किसानों की फसलों को भी व्यापक नुकसान पहुंचाया है। इसका प्रमुख कारण जंगलों में चारे और पानी की कमी है, जो हाथियों को मानवीय बस्तियों की ओर खींच रहा है। यह स्थिति न केवल मानव जीवन के लिए खतरा बनी हुई है, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन के लिए भी गंभीर चुनौती पेश कर रही है। इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए संबंधित अधिकारियों को मानव-जंगली जीव संघर्ष के प्रबंधन के लिए ठोस नीतियों और उपायों पर विचार करना होगा, ताकि दोनों पक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

इसलिए बस्तियों में आ रहे हाथी

विशेषज्ञों का कहना है कि एक हाथी को अपने पेट भरने के लिए रोजाना 100 से 150 किलो चारे की आवश्यकता होती है। लेकिन वर्तमान में जंगलों का दायरा लगातार सिमट रहा है, जिसके कारण हाथियों के लिए आवश्यक चारा की उपलब्धता कम हो रही है। इस कमी के चलते हाथी अक्सर अपने पारिस्थितिकीय क्षेत्र से बाहर निकलकर मानव बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे मानव-जंगली जीव संघर्ष बढ़ रहा है। हाथियों को चारे की तलाश में खेतों और कृषि क्षेत्रों में घुसने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जो न केवल फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरा बन रहा है।

अंधाधुंध वनाधिकार पत्र बांटना बना मुसीबत

वर्ष 2006 में केंद्र सरकार ने जंगल में वर्षों से बसे लोगों को मालिकाना हक प्रदान करने के लिए एक एक्ट पेश किया था और 2007 में इस संबंध में नया कानून बनाया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य जंगल में रहने वाले लोगों को उनके जीवन यापन के लिए जमीन का पट्टा उपलब्ध कराना था। हालांकि, यह प्रक्रिया 5-6 वर्षों में पूरी हो जानी थी, लेकिन कई राज्यों में अभी भी वन अधिकार पत्रों की प्रक्रिया अधूरी है। इस बीच, कुछ लोग गलत तरीके से भूमि अधिकार पत्र प्राप्त कर रहे हैं और जंगल के भीतर की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं।

सख्त उपाय लागू करने की जरूरत

यह स्थिति न केवल जंगलों के पारिस्थितिकी संतुलन को खतरे में डाल रही है, बल्कि उन समुदायों की आजीविका पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है, जो वर्षों से इन जंगलों में निवास कर रहे हैं। इसलिए, इसे नियंत्रित करने के लिए आवश्यक है कि सरकार और संबंधित प्राधिकरण इस प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा करें और जमीन के अधिकारों की वैधता की सुनिश्चितता के लिए सख्त उपाय लागू करें।

RELATED ARTICLES
New Delhi
few clouds
35.1 ° C
35.1 °
35.1 °
36 %
5.9kmh
12 %
Sun
39 °
Mon
39 °
Tue
39 °
Wed
39 °
Thu
40 °

Most Popular